Dec 2, 2010

कैलाइडोस्कोप कनफुसिया

गलत ढूंढते हैं सही ढूंढते हैं,
जो सब ढूंढते हैं यहीं ढूंढते हैं
जो मिलता नहीं बस वही ढूंढते हैं
वो मिल जाए गर तो कमी ढूंढते हैं
कमी से परेशां ज़मीं ढूंढते हैं
ज़मीं भी बहुत दूर की ढूंढते हैं
बहुत दूर खुद में नमी ढूंढते हैं
नमन अनमने बन खुदी ढूंढते हैं
खुदी में खुदा बंदगी ढूंढते हैं
खुदा नाम बंदे बदी ढूंढते हैं
बदी नेक से सट लगी ढूंढते हैं
लगी में तने ताज़गी ढूंढते हैं
गुमे फूल पत्ती हरी ढूंढते हैं
कांटे जो चितवन हँसी ढूंढते हैं
हँसी घुलमिली पी खुशी ढूंढते हैं
खुशी इश्तिहारों की सी ढूंढते हैं
मुनादी में खबरों का जी ढूंढते हैं
खबर हो डरों में डली ढूंढते हैं
डर की वजह की धड़ी ढूंढते हैं
वजह से धनक गड़बड़ी ढूंढते हैं
शुबहे बा शक हर घड़ी ढूंढते हैं
टिकटिक न जानी कही ढूंढते हैं
अज़ानों में अपनी सुनी ढूंढते हैं
अँधेरे जला रोशनी ढूंढते हैं
सुबह रोज़ की हड़बड़ी ढूंढते हैं
जल्दी जली दोपहरी ढूंढते हैं
जले शाम हाज़िर छड़ी ढूंढते हैं
सहारे इमारत खड़ी ढूंढते हैं
साँपों में सीढ़ी चढ़ी ढूंढते हैं
चढ़े हों तो पारे कई ढूंढते हैं
कई मन के मारे परी ढूंढते हैं
परीज़ाद सपने नई ढूंढते हैं
पुराने रिसाले बही ढूंढते हैं
बाढ़ों से बच कर रही ढूंढते हैं
सूखे सफर तिश्नगी ढूंढते हैं
पिपासा जिज्ञासा रंगी ढूंढते हैं
रंगों में फ़ाज़िल कड़ी ढूंढते हैं
कड़ी जोड़ती फुलझड़ी ढूंढते हैं
पटाखों में बड़की लड़ी ढूंढते हैं
फूटे बरस की भरी ढूंढते हैं
भरती नदी और तरी ढूंढते हैं
लहर से किनारे ज़री ढूंढते हैं
किनारों के खोटे खरी ढूंढते हैं
खरी मनकरी मसखरी ढूंढते हैं
ठठ्ठों से जहमत बनी ढूंढते हैं
बनों में छितर चांदनी ढूंढते हैं
सितारों पे हरकत जगी ढूंढते हैं
नजूमी कलम दिल्लगी ढूंढते हैं
कल के नज़ारे अभी ढूंढते हैं
गुज़रा हुआ कल सभी ढूंढते हैं
जो है उसमें कुछ बानगी ढूंढते हैं
सांचों में सच सरकशी ढूंढते हैं
बगावत के पल हमनशीं ढूंढते हैं
रिन्दों में पर्दानशीं ढूंढते हैं
पर्दों में बातें बुरी ढूंढते हैं
बदमाश सारे नबी ढूंढते हैं
शरीरों में शहरी शबी ढूंढते हैं
कस्बों में हसरत दबी ढूंढते हैं
दबे गाँव गाड़ी रुकी ढूंढते हैं
सिगनल में तीखी सखी ढूंढते हैं
मिर्चों से आँखें धुंकी ढूंढते हैं
नज़रें उतारे यकीं ढूंढते हैं
भरोसे फलक में मकीं ढूंढते हैं
पता नाम सा कुछ कोई ढूंढते हैं
कहीं कुछ भी हासिल नहीं ढूंढते हैं
हिसाबों की गोली दगी ढूंढते हैं
लगी जो लगन की पगी ढूंढते हैं
पग थक गए बेदमी ढूंढते हैं
मुक़र्रर के दम ज़िंदगी ढूंढते हैं
ज़िंदा मुरादें सगी ढूंढते हैं
अपने से सब आदमी ढूंढते हैं
अलख ढूंढते अलग ही ढूंढते हैं
वो जो हैं जहां वो वहीं ढूंढते हैं