Apr 28, 2011

संगत राशि


पक्का नहीं कहता  कि सब, सांसत से लड़ लड़ता हूँ मैं
हम कदम इक दम  मिला, दुइ  पाँव  चल चलता हूँ मैं

उजड़ें   दीवारें  खँडहर,  छातें  हों   ख्वाहिश  बरस  भर
आसमां  तू  उड़  भी  जा, पर-छाँव  चिन  चिनता हूँ  मैं

कुछ  व्यर्थ हों,  कुछ  अर्थ हों,  जेवर  जवाहर  जर नहीं
दो  कौड़ियों  के  एकवचन, बहु  दांव  धर  धरता  हूँ मैं

तन-धन  छंटा,  मन-घन  घटा, घटते  घटी तारीख कम
मानस  उमस  बचता  गया,  जिउ ताव तप तपता हूँ मैं

तट  कट  बहें  मझधार  पर,  पर  संग  रहो तुम धार पर
अविरल  तुम्हीं  को  देख  कर, हर घाव सह सहता हूँ मैं

धमनी  में  धर  धूधुर-धुआं,  माया  के  छाया जाल  मथ
इतना  बिलोकर  तुम  जहां,  उस गाँव  बस  बसता हूँ मैं

Apr 21, 2011

इतने दिनों के बाद रात ...

बात सपनों की  ये  बारात,  रात  जग अफ़सरी  जगमगाई  है
कुछ  हैं  ख़्वाबों  से  बदर,  उधर  जल  जलपरी  नींद  आई  है

जीव की  जान  गड़ी हूक,   मूक  में  गुमशुदा  ख़्वाबों की भूख
जबर  ये  भूख  है  शाइस्ता,  आहिस्ता   ये  हूक  भी  सौदाई है

ये थके हाथ उफ़ थके पैर,  गैर  के  द्वार  थके जज़्बात की सैर
थकी सिलवट है खुली आँख,   झाँक  कहती  वो  सुबह छाई है

यूं कैसे मान लूं बयानात,  हालात कि ढल चली  है  महल रात
फकत क़ानून के तहत, तखत बताए  किस पाए पे सुनवाई है

देख ली  नाम  से  निकली,  वली  बड़ों  की  यूं नीयत छिछली
ये  ताकत है ता क़यामत,  नियामत है कमज़ोर में अच्छाई है

कौन  अच्छा है  क्या  बुरा,  चुरा  सुकूं  अगर वो चारागर चरा
ये हो न हो  नहीं खबर,  गर जो  खुद से जीत लें  लड़ी लड़ाई है

जिन्हें इस इल्म का इरफ़ान, फ़रमान पे जिनके मुरीद कुर्बान
क्या  उन्हें  इल्म है  गाफ़िल, हासिल  ये जो इल्म में रुस्वाई है

कभी  पहले  भी  थे  यहाँ  जवां, जुबां के दायरे हसरत के मकां
वो   भर तारीख  में  नहीं,  यहीं  महफ़िल  में आलमे तन्हाई है

भूल जा  भूलते जाना,  माना सर न  सहारा  है  भरम  ज़माना
रेत शहतीर में है  चाह है गुम,  तुम-हम के  टेक  हैं  परछाई है

भूल कर फिर से  मैं जो  याद करूं,  भरूं जो याद की भरपाई है
रात गुम ख्वाब है  बातों की बात,  बात रंग स्याह से रंगवाई है