Aug 31, 2012

मिर्च की बातें



बात का मानें बुरा  क्या, बात होती जाएगी
बहस फंसती सुबह, कारी रात होती जाएगी

रुसना  रूसे  मनाना,  रोज़ रुकती  रेल  है
फ़िक्र के चक्के छुड़ाना,  चल पड़े फिर खेल है
मैदान से ना भागिए, ये आप की ही बात थी
जीत हारें दुःख चले,  बचता मनों का मेल है

कुछ दिनों में यह गई, बारात होती जाएगी
बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी

ये हम पढ़े वो तुम पढ़े, सुनने कहे का माल ये
नाली में थोड़ी जाएगा, संचित क्षुधा का थाल ये
इस भोग का परशाद तो, मीठा कभी खट्टा कहीं
कुछ मिर्च भी मिलवाइए, अपना बने वाचाल ये   

बे-तीत के बीते में फीकी, याद होती जाएगी
बात का  मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी

यह लाज़मी  कैसे है, केवल आपकी  ही सब सुने
ये तुम सुनो वो हम सुने, बकताल  के बक्से भरें
ऐसा  खजाना हो महाशय, राज तक को रश्क हो
दौलत  दिलों की जोत, भूलें  रात के  झगड़े बड़े

धौं देखिये दीपक ये जो, सौगात होती जाएगी
बात  का  मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी

अब सब  अगर हो जाएँ, अपने आप से, अटपट अजब
कुछ नया  कैसे हो, अगर,  बस एक सा हो सब सबब
बेहतर  है  थोड़ा  दर्द  लो,  दिलफोड़ बातें  भींच कर
सर्वांग आकुल विकल हों, ज्यों जब अलग की हो तलब


सबके अलग को सींच कर, ऋतु साथ होती जाएगी
बात  का  मानें  बुरा  क्या,  बात  होती  जाएगी

चूंकी  धरा   अलबेल  है,  सच के कई अपवाद हैं  
कितने  मिलेंगे  जहां  ऊपर,  कर्कटों  की खाद हैं
उनका कहा सुनना गया इस कान से उस कान तक
आगे चलो  प्रिय  प्रेम से, कविता भरे सब स्वाद हैं

तुक काफ़िये महफ़िल,  कहे आबाद होती जाएगी  
बात  का  मानें  बुरा  क्या, बात  होती जाएगी


Aug 19, 2012

काव्यशेष आकाश



गूढ़ अंतर से मिला कर मूढ़ मंतर
तर बतर लौंदा चढ़ाया चाक पर
भर हाथ माटी मन लगाया
सजल खांटी तन बिठाया थपथपाया
धिन्नी चकर गोला घुमाया
वर्तुलों की धाक धर
तब कर धड़ा गहरा घड़ा

गहरा धड़ा पानी चला कितना घना
छल छलक छल चिकना बना इतना छना 
छनकर छनन झंकार टप्पे ताल
ढुलका  ढुलक ढल तलवार या की ढाल
लोहित रूप ढाली अवसरों की खाल
जंगी आंच झुलसा रे मना
मन रंग तापे तब चढ़ा गहरा घड़ा

गहरा चढ़ा घटता घटक संयम झटकता जा रहा
डर के परे वो सब करे वर्जित सुना जो था कहा  
बोलें न बोलें महफ़िलें
पुरखे कथन की अटकलें
टक राह रोकें खट चलें
चलता विकल अनुवाद धीरज जा बहा  
अनुराग बस घर्षण गड़ा गहरा घड़ा  

गहरा गड़ा पाताल नभ का भाल
धरती की भुजाएं समय के चर व्याल  
कूट विलोम धर के धार
आगत नियति का व्यवहार 
सादर ना रहा हर एक जैसे बार
सब दब बुदबुदा घिसता गया अवशेष में वाचाल
अटपट अगिन का  भूचाल जिस जग में पड़ा गहरा घड़ा

गहरा पड़ा लो गूँज खोती जा रही लो गूंज
की आवाज़ भी ना आ रही अनुगूँज
किसने कब सुनी सूनी डगरिया भीड़ के
रेवड़ बड़े झूले झुलाती रीढ़ के
अंगवाल ले चुप्पी छुपी बहरी नगरिया नीड़ के
तिनके उड़े उड़ते गए तो मूंज
के रस्से कटा बादल उड़ा पोला खड़ा गहरा घड़ा

Aug 13, 2012

बेचैनियाँ



आरे आज के चिरते, गुज़ारे कल नहीं जाते
जले रस्से तमाशों में, हमारे बल नहीं जाते

ये चिपकी राख है बेढब, जो उड़ने भी नहीं पाती
हवा में दम भी ना इतना, शरारे जल नहीं जाते

तपिश ले जा रही कितने, समंदर लहर पारों से
नदिया क्या कहूँ तुमसे, ये खारे गल नहीं जाते

तेरी मिट्टी का साया हूँ, वो सौंधी है मेरी नस में
दश्त दम तेज सूरज हो, तेरे बादल नहीं जाते 

बड़ी मायूस गलियां हैं, कोई किस्से नहीं सुनता
फ़साने अजनबी के राज़, प्यारे छल नहीं जाते 

ये सब टलते हुए अंजाम, सुबहो शाम कहते है
सवालों को सम्हालो गर, संवारे हल नहीं जाते 

न मैं हूँ वो न वो तुम हो, ये हम जैसे यहाँ बदले
काश रुखसत की घड़ियों से, उजाड़े पल नहीं जाते 

Aug 7, 2012

हंसध्वनि



[ उर्फ़ मोह-दृष्टि द्रोह-दृष्टि बब्बन उवाच ]

....राजहंस की खबर सुनी है आने वाला है

श्वेत धवल है, कहते हैं वो, कहीं छींट की स्याही उस पर, नहीं ठहरती
इतना उजला, चपला शायद, वही पंख ले, धरा उतरती
रोज़ नहीं आता डब्बों में भरे खचाखच लगे धकाधक
टेढ़ी मेढ़ी रेल पेल से कितना ऊपर उड़े चकाचक
उनका जैसा नहीं, रंग के, बैठ गए जो इस जहान में
असली खालिस, शुद्ध बना है, मिस्टर वो तो आसमान से
बादल संग सुकून सुधा बरसाने वाला है
कलुष मनुज कहते है वो धुलवाने वाला है

इतनी सारी उम्मीदें आशाएं उसके आने पहले यहाँ हो गईं
अनदेखों में बदल की बातें उंगली बित्ते जमा हो रहीं
दृढ विश्वास भरा है उन्नत ग्रीवा उसकी असली है
उसके आने के भय से मोरों की हालत पतली है
भीड़ नहीं भगदड़ से फैले, जाते किस्से नीर क्षीर के
वो आएगा ठीक करेगा, सब मुरीद हैं नए पीर के
देखा भाला नहीं मगर बतलाने वाला है 
नल के से वरदानों को घर लाने वाला है

इसी लिए बेदाग़ मानते, शायद, दिखता नहीं दूर से
और पास आने पर, जायज़, चुंधिया जाएं नयन पूर ये
तब देखेंगे, डैने कितने, खर पतवार कटाएंगे
कितने सपने, सच होंगे, या फच से फट हो जाएंगे
क्या किसान की बात सुनेगा, या कुम्हार की सोचेगा
या फिर पंख सजाने को, बाकी की बाड़ी नोचेगा
मोती चुगना उड़नखोर क्या खाने वाला है
उतरेगा नीचे या बस मंडराने वाला है

बब्बन सम्मत नहीं विषय से अलग थलग से रहते हैं
फटी हुई तहमद से अपना मुंहय पोंछते कहते हैं
तुलसी बाबा कहे रहे वा चेरि छांड़ि के बात
उहय मिली हर आज़ादी माँ, उहय सांझ दिन रात  
बाकी-झांकी फाका-मस्ती सावधान-विश्राम
फांकी चीनी काम नाम की सो मीठा परिणाम
मेहनत करने वाला चख कुछ पाने वाला है
उड़ने वाला चुगते ही छक जाने वाला है

इतने सारे परमहंस देखे जो आए बटोर गए
और हाशिए पर जमघट में हाजिर कितने नए नए
कोई काटे जात नाम, मज़हब पर कोई बाँट करे
कोई आधी अकल लगाए, कानूनन गुमराह करे   
सभी लड़ें पैसों के बल पर, जिन्हें लूट ने लेना है
जिसका जिसने लिया उसी को, सूद बाँध कर देना है
जब चांदी जितवाय, न्याय मर जाने वाला है
नियम नया क़ानून, कसम घबराने वाला है

हंस हवा में रहा तभी, सब कहते हैं, कस अच्छा है
तनिक भुईं में आय, कहेंगे, चिड़िया का ही बच्चा है
ये बब्बन की बात रही, है नहीं जरूरी, आप सुनें
आँखें खोले, जांच देख कर, अपनी मर्जी छाप चुनें
किसने देखा चमत्कार, सरकार भूल का जंगल है
सभी वाद कुछ खोट भरे, हर शुभ में थोडा मंगल है
ऐसा क्या कम चोर ही कम हरजाने वाला है
हर्ज़ नहीं कुछ नया बने जो आने वाला है

वैसे दुनिया भर का, जैसा, हाल बताने वाला है
बड़े खड़े जो देश, वहाँ भी, चकमक घोर घोटाला है  
सभी समंदर नमक भरे, खारों का खर तर जाला है 
बनने वाले बहुत जहां पर, तेज बनाने वाला है
मन है जब तक चाह, दर्द रह जाने वाला है
सा रे ग प नि सा जैसा, गाने वाला है  
अभी दो पहर ताली दो वो आने वाला है
अपना तम अपने भ्रम से बन जाने वाला है

...और राजहंस की खबर सुनी है आने वाला है ....