Apr 17, 2013

जवाबों की दुनिया में सवाल


भले आदमी तुम कहाँ पर मिलोगे, प्रफुल्लित खिलोगे भले आदमी
दीन दुनिया की रफ्तार में खर्च बचते, कहाँ तक रहोगे भले आदमी

अल्टे सल्टे पुलिंदों की ख़ुफ़िया गुफ़ाएं
नीम छत्ते या सुविधा में धुत साधनाएं
ता-हद्दे चाहत, इबादत के चिलमन
पर्दा पर्दा ले दौड़ी थकी व्यंजनाएं

रुकोगे चलोगे चलोगे रुकोगे, वो रंग कौन कान्हां से हमराज़ होगे
चलते-पलते बदलते बगल की ज़मीं, याकि बादल बनोगे भले आदमी

यूं हैं नज़रें करम हर नज़र है अलग सी
दिन लगें सारे जंगल, कभी साफ़ बस्ती  
कब ये गड़बड़ के विस्तार सब ठीक लागें
क्या गलत की गणित है कि या है सही

जो ये वैसे नहीं ऐसे कैसे लगोगे, जैसा सोचा उसे कर के भी ना करोगे
अपनी बीनाईयों की तड़प में सुभीते, किसके चश्मे रहोगे भले आदमी

भले आदमी आज हो या कि कल हो
अटल शाश्वत या बदल के शगल दो
यार अफसोस दो या भरोसा बढ़ा कर
अलग की तराशी गुज़रती नक़ल को

विविध रूप में खींच खांचे रंगोगे, हर समय हो भले ये सदा ना सुनोगे
वो सुने अनसुने ठूंस टांड़ी में भूले, रहना भारों में हल्के भले आदमी     

ये भला वो भला नाम का सिलसिला
ठोस बातों का मज़मून नम पिलपिला
पीते पीते कभी प्यास बुझती न आए  
हम कुआं रब का डूबे मिले ना तला 

कूप खुद से निकलकर कहाँ पर चढ़ोगे, नदी के बहाने समंदर गिरोगे 
रेत में ढूंढते मृग उनींदे सुपन, बावरे मन अजब जन भले आदमी

हसरतें  रहतीं तारी सदा के लिए
वक्त सीमित सनम फैसला कीजिये  
रूतबा रुक्का जो यादों का सामान हो
याकि धड़कन कि जिसमे लगे दिल जिए

यूं ही दिल को दिमागों के भीतर सुनोगे, औ साँसों को भी रोशनी में गिनोगे  
उसमें  चमके न चमको रहे सादगी, ताज़गी लिख के रखना भले आदमी