Mar 24, 2013

हमसाया आसमां


मिले जो पीर दुनिया की, या कि दुनिया के पीर मिलें
नहीं मिलें ये अलग से, एक मिलकर के तकदीर मिले  

ये तो एकबार साथ चले, फिर साये से भी अज़ीज़ बने
दिन ख्वाब धुन में साथ रहे, रही रात बगलगीर मिले

थे अपने उजाले के आईने में भी, हमशक्ल ये हमारे से
चटख स्याह हम सहारे थे, हमें भी रंग से तस्वीर मिले

समझ कर क्या समझना, भूलना भी नामुनासिब है
न अपनी सोच में काबू, न चलते कहीं कबीर मिले

ये बेमतलब अलग बातें, कभी मतलब सही बना लेवें
कोई पूछे तो याद आए यों, जैसे राह में फ़कीर मिले 

Mar 9, 2013

कवितालाप



कविता तुम कविता सी भी रहना, कभी-कभी हो पाए तो
वरना सुन देखा घनचक्कर, अक्कड़-बक्कड़ लिखवाए जो

ये नहीं कहा रुक बंध जाओ, पल पलट निहारो पाले दिन
हाँ कभी-कभी ना सदा-सदा, आ जाना छंदों में छन छिन
फिर अपने सावन झूले चढ़, अंतस में आग बगूले पढ़
कथ राह बनाना आगे बढ़,  पथ दुर्गम बनता जाए तो
[कविता तुम कविता सी भी रहना, कभी-कभी हो पाए तो]

माना कि यहाँ पर इतना कुछ, बरसों से बरस रहा ऐसा
तल के भीतर पावक धावक, तर कर के तरस करे जैसा  
सुनियो सुनियोजित नहीं जना, कहियो कहना आषाढ़ मना
संयम लपटों को आंच बना, तप शिशिर जोत बन जाए तो
[कविता तुम कविता सी भी रहना, कभी-कभी हो पाए तो]

रवि रोज़ घूमकर आएगा, किरणों भर कसक चुभाएगा 
कहीं न कहीं ये दुनिया में, बादल भी फट गिर जाएगा
इस समय खुला कुल छुपा नहीं, गलती हो चाहे बात सही  
निज खोजा पाया गहा यहीं,  खो कर हलका हो जाए तो
[कविता तुम कविता सी भी रहना, कभी-कभी हो पाए तो]

धीरे धीरे तन ढलता है, मन का मुख मोड़ बदलता है
जो नया भला सा चमकाता, उसके साए युग चलता है 
बदली भाषा आशा बदली, नव चाल ढाल में गाँव गली  
पर हर ना होनी गात भली, बहु सुखिना फूला जाए तो   
[कविता तुम कविता सी भी रहना, कभी-कभी हो पाए तो]

लघु दुखता साथी रहे मगर, वो चूका चिरमिर छाप घटा
कब झड़ी लगे और अनायास, गुम राहें पूछें बता पता
जीवन यापन में देशाटन, देशांतर व्यापित विज्ञापन 
जिउ ऐसे में शैशव यौवन, कुछ क्षण लौटा के लाए तो
[कविता तुम कविता सी भी रहना, कभी-कभी हो पाए तो]

लो यदा कदा सुख होने दो, दुःख को दो झपकी सोने दो
धक्के मुक्के की भीड़ ढूंढ, खो कर के खुद रुख होने दो 
कुछ पल का हो बेजाल जहां, ठहरी हो लहरी चाल वहाँ 
ये कहना कितना सरल यहाँ, अब होना जब हो जाए तो  
[कविता तुम कविता सी भी रहना, कभी-कभी हो पाए तो]