tag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post1970668799667388340..comments2023-07-06T16:57:05.144+05:30Comments on हरी मिर्च: स्वागत / एक, दो, तीन चारAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-41048109266406773492010-01-16T11:37:18.366+05:302010-01-16T11:37:18.366+05:30हतप्रभ हूँ...ओर खामोश भी ..इस रौ में डूब जो गया हू...हतप्रभ हूँ...ओर खामोश भी ..इस रौ में डूब जो गया हूँ...बेमिसाल ...कहना काफी नहीं है ..पर फ़िलहाल यही कह रहा हूँडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-85146983881194149312007-11-25T01:49:00.000+05:302007-11-25T01:49:00.000+05:30आगे फिर.... लिखिएगा भी.आगे फिर.... लिखिएगा भी.आस्तीन का अजगरhttps://www.blogger.com/profile/15811514788578363221noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-83730467670226259572007-11-23T00:19:00.000+05:302007-11-23T00:19:00.000+05:30पहले निंदा कर लेते हैं फिर स्तुतिः 1. हो सकता है प...पहले निंदा कर लेते हैं फिर स्तुतिः 1. हो सकता है पहला ब्लॉग है इसलिए इतना सारा नजला इकट्ठा झड़ रहा हो, पर ये कुछ ज्यादा फास्ट है इसलिए आतंकित करता है. पर जब वाक्यों को देखो तो गजब का दृश्यांकन है. आपके जीनियस होने के बारे में संदेह नहीं, पर पढ़ने वाले थोड़ा और सरलीकृत प्रारूप चाहेंगे. 2. शायद इसलिए भी कि हिंदी को रिक्लेम करना या फिर लिखे जाने की उत्कंठा के कारण ऐसा हो रहा है. 3. मुझे ऐसा लगता है जैसे एक शास्त्रीय राग को थोड़ा फास्ट फॉरवर्ड करके सुनाया जा रहा है. थोड़ा स्थिर चित्त होकर, थोड़ा सरल, सहज और पूरी बाल्टी उलटने की जगह एक धार बांध कर.<BR/>अब स्तुतिः आपको शायद अंदाजा हो कि आप नहीं लिख कर किस कदर अन्याय कर रहे हैं. बतौर पत्रकार मैं देखता हूं कि आप जैसे लोग क्योंकि पास कह देते हैं इसलिए हिंदी इतनी साक्षर और अशिक्षित लोगों की भाषा बन कर रह गई है. इसलिए आपकी शिरकत जरूरी है. ये कितने गज़ब की बातें हैं-<BR/>लेकिन गिरेगा नहीं और मोहल्ले भर के केबल के तारों के जंजाल को समेटे रहेगा और सुनता रहेगा हार्मुनियाँ की दुकान से निकलता दर्द -ऐ - डिस्को या जो भी ताजा तरीन हित गीत है - जब तक कि तमाम सड़क गीत के आलाप से त्रस्त हो जाये और गीत अपनी पायदान दर पायदान ढुलक कर अगले को मौका दे ही दे ।पुरानी नीम कि निम्बौलियाँ हर साल की तरह खम्भे के पैरों में गिरेंगी और मुँह अँधेरे गली के शोहदे नीम की टहनियों के जोड़ भी तोड़ेंगे और फिर दातूनी आजमाईश करने के बाद चाय कि दुकान में बैठ कर ताजी अफवाहों का बाज़ार गर्म भी करेंगे ।<BR/>और ये भी<BR/>रंग वाले एल्बम में पीले पड़ते लम्हें , (अब ) दैनंदिनी के नए सन्सकरण और निजी, व्यक्तिगत भ्रम, सवालों के अम्बार और जवाबों के पुलिंदे । पिछली कलम की सियाही बहुत धुंधली है और इस कीबोर्ड की चमक तेज है। फिर भी मैं अपने भरम का मालिक, समझता हूँ, कि कभी कभी जो नहीं है उसकी सोच का लुत्फ़ है तो सही। माने रोज़ के बही - खाते से तंग दिमाग को कहीं सैर पर ले जा कर बहलाना फुसलाना वगैरह वहैरह।<BR/>बढ़िया है सर जी. हिंदी को आपसे बहुत काम है.आपका मेल आईडी क्या है.आस्तीन का अजगरhttps://www.blogger.com/profile/15811514788578363221noreply@blogger.com