tag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post7125507273180694853..comments2023-07-06T16:57:05.144+05:30Comments on हरी मिर्च: बेतार की जिरहAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-18230585231342236632010-04-15T00:12:43.122+05:302010-04-15T00:12:43.122+05:30आज पढ़ा आपको। क्या टिप्पणी करूँ जिसका आपके लेखन से...आज पढ़ा आपको। क्या टिप्पणी करूँ जिसका आपके लेखन से कोई मेल नहीं, आप अद्भुत हैं बस...Atul Sharmahttps://www.blogger.com/profile/16469390879853303711noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-5600666538495904272010-04-12T16:19:40.096+05:302010-04-12T16:19:40.096+05:30ना बोलती हैं मछलियां, क्यों बोलती नहीं,
चुपचाप तैर...ना बोलती हैं मछलियां, क्यों बोलती नहीं,<br />चुपचाप तैरती हैं, ये रहती हैं किस तरह.<br /><br /><br />जिस दिन बोलने लगेगी .रहना मुश्किल हो जाएगाडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-6305513449540614262010-04-12T07:02:01.366+05:302010-04-12T07:02:01.366+05:30मनीष भाई ,बहुत दिनों बाद एक मजी हुई ग़ज़ल ,हालाँकि...मनीष भाई ,बहुत दिनों बाद एक मजी हुई ग़ज़ल ,हालाँकि शुरुआत समझ नहीं पाया ,गहरा दर्शन लगा ,पर उम्दा अंदाज ए बयां के लिए बधाइयाँ <br />आपका ही ,<br />डॉ.भूपेन्द्र <br />रीवाडॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंहhttps://www.blogger.com/profile/07345306084462566690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-78079307576738117612010-04-11T11:20:32.038+05:302010-04-11T11:20:32.038+05:30कमाल है मनीष भाई.. क्या बात है ....
ये बस आप के ब...कमाल है मनीष भाई.. क्या बात है ....<br /><br />ये बस आप के बस का है !!<br /><br />बीती है रात हिज्र में जल जल के इस तरह<br />बुझ बुझ के रह गया हूँ, हो धुंआ जिस तरह<br /><br />मीतअमिताभ मीतhttps://www.blogger.com/profile/06968972033134794094noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-42253526129608895452010-04-11T06:20:21.738+05:302010-04-11T06:20:21.738+05:30लगता यूं गम मसरूफ़ हैं,रूमानी किताब में,
लो चुप हु...लगता यूं गम मसरूफ़ हैं,रूमानी किताब में,<br />लो चुप हुआ बस हो गई, बेतार की जिरह.<br /><br />-बहुत बढ़िया..अच्छे हैं सभी शेर!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2464290160123606883.post-31447907049108997262010-04-11T03:58:08.901+05:302010-04-11T03:58:08.901+05:30ना बोलती हैं मछलियां, क्यों बोलती नहीं,
चुपचाप तैर...ना बोलती हैं मछलियां, क्यों बोलती नहीं,<br />चुपचाप तैरती हैं, ये रहती हैं किस तरह<br /><br />बस, यहां से मुझे कुछ बात पकड़ में आती है। बहुत खूब। हमेशा की तरह फिर दोहराऊंगा, कविता आपको सिद्ध है। आपक जैसा लिखनेवाले बिरले देखे हैं मैने।अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com