भरे एक सिरे से
और बहुत दिन पहले से सिरफिरा नेपथ्य में वर्तमान
शीर्षस्थ जो भी
था उसका जैसा भी था संकुचित दिनमान
अनुमानित
संभावनाओं का मानक मारीच जाली सामान
गोलमेज
उम्मीदों का धुंआ शाबाश
अच्छे से बेहतर
दिनों की आस
बेतरतीब बनैले सवालों
के जवाबों की घास
अब क्या तरकीब उगने
को है आसपास, गान मान सावधान चरो
खाली स्थान भरो
भरे अभ्यर्थित
आकांक्षाओं का अवदान कहे चमको
अँधेरे की डरी जड़ों
और बदलने की बढ़ी पढ़ी दीमकों
लिए भूल का डर
की भूल की धूल पर आहिस्ता के निशान
चढ़ सीढ़ी पर
पीछे हर पीढ़ी घर खींचे गया बीता सामान
वो चकमक का
पत्थर और पत्थर तो पारस की चाहत भी
पानी में डूबा
और लहरा जो गहरा तो लहरों से आहत भी
राहत क्या सांसत
क्या क्रोधित या संशोधित भलमनसाहत की
सजावट ले शीशे
में बनावट से है परिहास, हँसो धँसो बूड़ो उबरो
खाली स्थान भरो
भरे आभास संवेदना
और गुजरने के बीच बचता माने साम्य सोचना उबासी
शब्द तजुर्बा
है अर्थ उपलब्धि नहीं वो जाने तमगों का तमाम दिन ढले बासी
जो है सो है तो
है एक था सुखफोड़वा दैनन्दिनी प्रमुख
प्रश्न दिशा से
आवें भ्रमजोड़वा उल्का साथी अजाने अमुक
हवा को
पत्तियों से तोड़ता एक पेड़ ज्यों बिन टेर कहता हो
लचकना और के
लचक के टूटना हर बेंत का एक बेर, हो न हो
इसी होने का
यूं होने में सपना खैर जैसा हो
नहीं जो और हो
या था यहीं है दायरा अवकाश, घूमो जा मुड़ो फिर से फिरो
खाली स्थान भरो
भरे कहना ऐसा
कि जो होना था वैसा नहीं भी है होता
बरसात के
गोपनीय किस्से में बूंदों से वंचित सूखा सदा सोता
कोई है और ऐसा होता
हुआ है बेतरतीब जागा जिसके साथ
देखना ओझल होते
तने, नख, शिख मुद्राओं से छूटते हाथ
जो नहीं हुआ होना
था वृतांत और उसका विवरण आद्योपांत
बताइये बने अनमने
पर तरस खाते हुए बन सजे सभ्रान्त
या कि समझें सभा
के गहन में सकपकाते विकल क्लांत
एक रंग के रंगी
ढली शाम आकाश, नीले नारंगी लाल हरो
खाली स्थान भरो
भरे अस्ताभ
व्यस्ताभ दिनचर्या की लताएं ध्येय और निमित्त
गजर के बजने और
नज़र बदलने में पलटते छाया चित्र
यहाँ भी हों और
वहाँ भी आज क्या कल परसों
किसी दिन
अकस्मात मतलबों की पड़ताल ज्यों से जो त्यों
ये लकीर में
कितने बिंदु हैं सपाट में हैं कितनी लकीर
मेघ मालाओं में
कितना जल, नियति की कमान में कितने तीर
होता भी है या
नहीं तोड़ना स्वयं सिद्ध ढर्रों की तकदीर
बिन टूटे भी
बने काश तन मन जीवन विश्वास करो
खाली स्थान भरो
भरे चले जाते
हैं ऐसे ही दुबके न बन पाए कहानी के हिस्से साथी
मसलन अकलपस्त
भानखट्टा बतलदकोल लकझकबाती
वैसे न जाने
कितने नियम से निराले आगत अनुमान
शायद के शायद
हो जाने वाले ध्वनि धीमान के सामान
अजन्मे की
नागरी के देव अकथ के आगोश उजागर
बक्साबंद व्यंजना
में उबले अभिधा से आँख बचाकर
शब्दपात न जाने
जितने रहे आए सारे सफ़र के होश बाहर
कभी तो आएँगे
फलाने के नाती जन पास, ढूंढ, खो, पाओ, धरो
खाली स्थान भरो