कसम इतने से इतना
निठल्ला रहा इन दिनों, क्या बताऊँ, चरागों को दिन में जलाया
क्या गुज़र का
वहम था, अँधेरे का डर था, या लगा कुछ करूं, ना करूं मन का भाया
ऊहा की पोह
चाहत नक़ल मंजर चुनी
नाम की चाशनी
काम की धौंकनी
क्षीण ध्वनियों
में हुंकार का इंतज़ार
कर ले बाती दिए
दाम की रोशनी
झाम चिपटा रहा,
ताम लिपटा लगाया, लेप लज्जा की लपटों में,
संयम भुनाया
यूं लगा चल-निकल,
राग रंग तंत्र छल रे, देख अनदेख में, मन सुना
ना सुनाया
दिक् कनक की
छनक बन दहक लकलकाती
ताक पर दिख
धनुक उसके कोने की थाती
दूर क्या पास
है धुंधला विश्वास है
मुख तमन्ना है ऊसर
में नश्वर उगाती
उम्मीद ऋण मुक्त
होने बसाया, कितने अगले दिनों नाम
रख, डर बचाया
दिन के संगी
बढ़े, फिक्र के जाम तारे, रोक ले फासला शाम साया ही पाया
यह यही बस नहीं
बावरे का बगीचा
ना मिली बारिशें
भर के खारे से सींचा
घर गरानों को
कैसे बसाते समंदर
सीखा लहरों से
फेनों को सांसों में खींचा
फिर ओसारे में
ठूंसे दिनों को निकाला, याद दुहरा किया मन के कोने तहाया
गया सोचने को
बहुत सोचना था, खास कर वक्त जो आने वाला
न आया
चल गई बात भी
बुत सी खुदगर्ज है
सांस के अर्ज़
का दिल बड़ा मर्ज़ है
अर्ज़ी मर्ज़ी के
मालिक पुराने के दाता
जानो दिल का जमा
है जिगर खर्च है
क़र्ज़ रोशन
जहां, शब्द घड़ियों में जाया, अब थका या पका कौन चेहरा बताया
जो न रीते या
बीते में बाहर को खींचें, ऐसे दिन भी जिन्हें बीतने तक बिताया
अपनी अपनी
व्यथा अपना उपचार है
हर कथा का कथन
से जो व्यवहार है
एक जरिया है
ज़र्रा है तो क्या हुआ
इतनी सारी जगह छूटा
संसार है
ठोस इसकी धरा
है न पाओ तो माया, ये हिरन है किरन अंतरालों का साया
पड़ के चौपड़
यहाँ रंग चतुरंग पाला, इसने सबको खिला खेल अपना खिलाया
क्या करे ना
करे ये सफ़र का खिलाड़ी
रास काँटों में
निखरी जो फूलों की बाड़ी
दूर से देखना
और छूना मना है
याद आती बहुत है
नदी क्यों पहाड़ी
नाम बहने का बचपन
था नुस्खा बताया, बंद आँखें करो मित्र सागर मिलाया
कौन सी नींद मीठी है ये बाद में, जान लूं तो बताऊँ सुखी कौन
आया