Mar 26, 2008

सवेरे का सपना : स्वप्न का प्रलाप : तनाव के दिन

बहुत -बहुत दिनों से सपना सवेरे की नींद तोड़ता है,- सार में बराबर सा, - रूप हो सकता है थोड़ा बहुत ऊपर नीचे हो - हो सकता है बाहर निकले तो कुछ कम हो, पर होगा नहीं - उसमें समय अभी है - फ़िलहाल है कविता जैसा कुछ -अगले और पिछले अंतरालों का तर्जुमा -

यह नहीं होता-तो क्या होता?
कहाँ होता ? किधर होता?
किरण के फूटने से एक पल पहले,
अंधेरे में खडा कुछ देखता,
बस एक पल, जिसमें, विवादों के/ विषादों के पलायन का,
निपटता माजरा होता।
मगर कैसे ?

यूँ नहीं होता, अलग होता, अजब होता,
सजावट में, लिखावट में, करम में, आज़्माइश में,
अजायब सा धुआं होता,
बहिश्तों में..,
काश कोई फ़रिश्तों में,
मेरे नज़दीक आ कर बैठता,
और गुफ़्तगू, वरदान, वादा छोड़, अपने हाथ का ठंडा,
मेरे घनघोर अन्तिम की अनल के दरमियाँ रखता।
अमर जल बांटता।

आधी नींद चलती,
और डर ढूँढता, घर ढूँढता,
मुझसे अलग, मेरी नकल से दूर.
कितनी दूर ?
जितने लोक से अवतार,
मंथन की भरी नीहारिका के पार,
जा डर बैठता,
उस दूर मोढ़े पर।
अकेला।

खरे संताप की सीढ़ी,
चले सपने के चलने में,
कोई तहाता,
ठेल देता उस दुछ्त्ती में,
जहाँ पर कूदने के बाद भी मैं,
जा नहीं पाता,
निविड़ में भागता,
और भागता जाता,
छोर, बस एक अंगुल दूर,
केवल एक अंगुल दूर,
रह कर छूटता जाता।
पसीना फैलता।

और फिर वैसा नहीं होता,
शिथिल, बर्रौं सा मंडराता,
घूमता, घूम कर आता,
रुके सन्दर्भ को धुन बांटता,
फिर जागने का डंक दे जाता,
नहीं सपना, वही फूटी किरण,
है आँख में चुभती,
चीरती रक्त का आलस,
जीतती-हार, की हस्ती।
मिथक गाता।

तनावों में, उबासी से तनी जम्हाईयों को ले भरे,
एक और दिन आता।

17 comments:

राज भाटिय़ा said...

आप की कविता अच्छी हे,ऎसे सपने मुझे २९,३० साल पहले आते थे,जब नये नये पर लगे थे,अब तो उन की यादे आती हे.
आप लिखते बहुत अच्छा हे.

अजित वडनेरकर said...

जबर्दस्त है भाई।

अमिताभ मीत said...

अच्छा है भाई. एक और दिन ....., ओह ! कमोबेश ऐसे ही और भी देखते हों शायद.

अनूप शुक्ल said...

अच्छा है।

अनिल रघुराज said...

बहिश्तों में..,
काश कोई फ़रिश्तों में,
मेरे नज़दीक आ कर बैठता,
और गुफ़्तगू, वरदान, वादा छोड़, अपने हाथ का ठंडा,
मेरे घनघोर अन्तिम की अनल के दरमियाँ रखता।
अमर जल बांटता।
बहुत गहरा शिल्प है। मैं तो जैसे छवियों में खो गया। वैसे, आपकी तारीफ करना तो उजाले को बस उजाला ही बताना है।

Pratyaksha said...

बहिश्त न सही यहीं कहीं भी ...

Unknown said...

तारीफ करने की हिम्मत नहीं है....बस महसूस कर रही हूँ......

Sandeep Singh said...

"किरण के फूटने से एक पल पहले,
अंधेरे में खडा कुछ देखता,
बस एक पल, जिसमें, विवादों के/ विषादों के पलायन का,
निपटता माजरा होता।"
....पव फूटने से पहले अदृश्य जान लेने की धुन काबिले तारीफ...(जहां तक समझ पहुंची, ये पंक्तियां बहुत जचीं)।
समूची रचना के लिए बधाई सर।

Unknown said...

कवि महोदय,आपकी कविता ने हमसे कहा कि घनघोर अंतिम की अनल के दरमियाँ, ठंडा जल केवल स्वप्न या कवि ही दिखा सकते हैं। स्वप्न का प्रलाप वह भी सुबह का सपना(कहते हैं कि सच होता है ??). Interesting abstract yet hopeful thought. कविता शिल्प ऐसे ही नित नये स्वप्न बुनता रहे ।

आस्तीन का अजगर said...

एक सत्य है जो हमारे भीतर है. कई ऐसे पल हैं जहाँ सत्य और सच एक साथ शराब पीने या समझौता करने बैठते हैं. कई बार वह धुंध या खुमार कहीं भी हो जाता है. कभी एक जलसे की तरह कभी एक बवाल की. फिर बहुत सारा न जिए का हिसाब सुलटा लिया जाता है, बहुत सारे उस सबके साथ जो जिया गया. जब आप एक ऐसे शहर में सुबह को उठते हैं, जहाँ आप किसी को नहीं जानते तो वह धुंध थोडी देर तक पीछा करती है.इसका बाकी अंश पढ़ें यहाँ पर - http://kataksh.blogspot.com/2008/03/blog-post.html

मीनाक्षी said...

शिल्प सौन्दर्य मन को बाँधने वाला..

Manish Kumar said...

तेज बुखार में जागती आँखों से ही सपने दिखाई दे जा रहे थे , आज नींद को खराब सपने की यात्रा भी आपके साथ कर ली..

Ashok Pande said...

उम्दा है! मीर बाबा की याद आती है ना जब तब:

"यां के सुफ़ैद-ओ-स्याह में हमको दख़्ल जो है सो इतना है,
रात को रो-रो सुबह किया और सुबह को ज्यूं त्यूं शाम किया"

Gyan Dutt Pandey said...

सपने देखते रहिये जी! जिसने सपना देखना छोड़ दिया। उसने जीना छोड़ दिया!

डॉ .अनुराग said...

सवेरे का सपना काफी लंबा है ....खुशकिस्मत है की सपने देखते है .......अब की बार दुआ है कोई खुशनुमा पल देखे,,,,,,,,,पर आपकी अभिव्यक्ति का वाकई एक जुदा अंदाज है ....उसी पर बने रहिएगा

रवीन्द्र प्रभात said...

आप की कविता अच्छी हे,जबर्दस्त रचना के लिए बधाई!

मुनीश ( munish ) said...

kya mast fan following hai joshi ji.....raks karne ka dil hota hai kabhi?
jo article kaha aapne vo padha maine kabaadkhaane mein.sahi cheez hai.
apke profile mein indrajaal comics aur parag ka zikra hai. main unhe kabhi dekhna chahoonga. kisi ke paas madhu muskaan aur deevana magazines hon to mujhe zaroor batayen. maykhaane ke content ko lekar abhi zara asmanjas mein hoon .