Jun 8, 2013

भरे खाली की व्यथा कथा


अक्सर असमंजस  दिलबहार, मुड़ मुड़ कर पीछे जाएंगे
तबके  व्यतीत में तर  खुमार, खाली में भर भर लाएंगे 

दिन बीते भले लगे आएं, ये आज समय ही  खास नहीं
पुर ऊबड़ खाबड़ पथरीले, उर पर मधुबन, वनवास नहीं 
चूते खपड़े  ढब कच्चे घर, बिच्छू कीड़े  भय भूल भुला 
कल के जाड़े, लू के  झाड़े, यादें कोमल,  कटु-त्रास नहीं

भूले दिन विधना पर निर्भर, अक्सर निरुपाय नरो-नारी
माता, हैजा, काला जारी,  जब तब फलते दुःख बीमारी 
कम  मिलती वो रोशन  उजास, आखें फाड़े जागी रातें
संझा बाती थम  हो जाती,  ढिबरी में बिजुरी रख सारी

कैसे जैसे  धुर बीहड़  में, ज्यों पढ़ लिख कांटे फूल भए
ये सांझ  पलट गुलदस्ता हो, दूभर के दिन तो भूल गए  
वो दिन लेकिन जब बच्चों को,  कैसे कर के बतलाएंगे  
वारिद मन के मन ही में से, मन  का सावन बरसाएंगे 
ये  आदत  है हर  पीढ़ी की, हम भी किरदार निभाएंगे
तबके  व्यतीत में तर  खुमार, खाली में भर भर लाएंगे 

इस  आज समय जो ज़ाहिर है अखबार भरे मारा मारी 
हर रोज  कहीं  लपटा झपटी हर रोज  कहीं गोला बारी
क्या  ऐसा है हर  बात बुरी, या सिर्फ खबर के खेले हैं
क्यों वही  सुर्खियाँ हो जातीं, जो  सुर्ख रंग की हों सारी

जैसा  फ़ितरत में फैला है, मानव दानव  एक खाल बने
ताज़ा अधिमान  धरे  बहुमत, चटपट की चालू चाल चुने
ऐसे में संभव नहीं अधिक,  सद्ज्ञान कर्म की शोहरत हो
डर चमक खनखने  बिकते हैं, संपादक पाठक  छाप गुने

तत्पर तत्क्षण  उत्सुक अधीर, दुनिया दर नया बनाती है
मिर्चों के साथ सरस फल भी,  वसुधा हर रोज़ उगाती है
जो ऋण धन आलोचन वाले, वो  कमियां ही किलकाएंगे
समतोल  ताल अनसुनी किये, बेसुर  सुर समझ गवाएंगे
बिन समझे  संग प्रसंग  अभी, अनुभव  के गए भुनाएंगे 
तबके  व्यतीत में  तर खुमार, खाली में  भर भर लाएंगे 

हम सब हैं यायावर  जानी, जो राज कुमार स्वयं वर से
हम  जैसा  कोई  हुआ नहीं, हमने लिखने अपने हिस्से
पदचिन्ह  समय  की रेती पर, बनते मिटते जग जाने हैं
अज्ञात बहुत कुछ है अब भी, कहने बाकी कितने किस्से

कुछ  साल पहल विश्वास न था,  ऐसा भी होता जाएगा 
अपने जीवन में  परिवर्तन,  विरला कर  सरल बनाएगा
जैसे अनाम लोगों की धुन,  श्रमसाधन दिन  भरपूर भरे
ये जज़्बा इंसानी  कल फिर, सज बढ़ जग और सजाएगा 

बदले परिसर में विस्मय पर, यों खेल खिलाता  है आता  
ये उम्रदराज़ी का चक्कर, ज्यों निपट अकेला  कर जाता
यूं चक्कर के घनचक्कर में,  कंकर पथ  चोट खिलाएंगे 
तो जीने वाले  जोर लगा,  जीवन मुख  अलख जगाएंगे
कुछ सुन्दर  मुदा  मुरीद बने, गोरा पन  लेप  लगाएंगे
कुछ अर्चन,  रोदन,  रंजन से, खोए  में जिया जलाएंगे
अन्जाने  जाने  कथा-व्यथा, अचरज से  सींच  सुनाएंगे
तबके  व्यतीत में तर  खुमार, खाली में भर भर लाएंगे