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ये जो धूप-छाँह कयास है
और न डूबने का प्रयास है
जैसी आस-पास धमक-चमक
वैसी आस मन के पास है
चंद गुल मोहर की बाज़ियाँ
बंद पत्तों का अमल तास है
सब रेत रेत दयार भर
बस रहे के नाम प्यास है
चार गमले बसा के छज्जों में
सब्ज़ आदिम खुशी बनास है
कब गुज़र गई मीठी छनी
कब बदल बनी खटास है
अब जो भी है बड़ा सा है
या विष है या विश्वास है
यों गज़ल नुमा मरीचिका
छंद भाग बन का वास है
चलो टूटते तारे से ही
इस रात की उजास है