Nov 23, 2014

अस्ताभ-व्यस्ताभ


भरे एक सिरे से और बहुत दिन पहले से सिरफिरा नेपथ्य में वर्तमान
शीर्षस्थ जो भी था उसका जैसा भी था संकुचित दिनमान  
अनुमानित संभावनाओं का मानक मारीच जाली सामान
गोलमेज उम्मीदों का धुंआ शाबाश
अच्छे से बेहतर दिनों की आस
बेतरतीब बनैले सवालों के जवाबों की घास
अब क्या तरकीब उगने को है आसपास, गान मान सावधान चरो
खाली स्थान भरो

भरे अभ्यर्थित आकांक्षाओं का अवदान कहे चमको
अँधेरे की डरी जड़ों और बदलने की बढ़ी पढ़ी दीमकों
लिए भूल का डर की भूल की धूल पर आहिस्ता के निशान
चढ़ सीढ़ी पर पीछे हर पीढ़ी घर खींचे गया बीता सामान  
वो चकमक का पत्थर और पत्थर तो पारस की चाहत भी
पानी में डूबा और लहरा जो गहरा तो लहरों से आहत भी
राहत क्या सांसत क्या क्रोधित या संशोधित भलमनसाहत की  
सजावट ले शीशे में बनावट से है परिहास, हँसो धँसो बूड़ो उबरो 
खाली स्थान भरो

भरे आभास संवेदना और गुजरने के बीच बचता माने साम्य सोचना उबासी
शब्द तजुर्बा है अर्थ उपलब्धि नहीं वो जाने तमगों का तमाम दिन ढले बासी
जो है सो है तो है एक था सुखफोड़वा दैनन्दिनी प्रमुख
प्रश्न दिशा से आवें भ्रमजोड़वा उल्का साथी अजाने अमुक
हवा को पत्तियों से तोड़ता एक पेड़ ज्यों बिन टेर कहता हो
लचकना और के लचक के टूटना हर बेंत का एक बेर, हो न हो
इसी होने का यूं होने में सपना खैर जैसा हो
नहीं जो और हो या था यहीं है दायरा अवकाश, घूमो जा मुड़ो फिर से फिरो  
खाली स्थान भरो

भरे कहना ऐसा कि जो होना था वैसा नहीं भी है होता
बरसात के गोपनीय किस्से में बूंदों से वंचित सूखा सदा सोता
कोई है और ऐसा होता हुआ है बेतरतीब जागा जिसके साथ
देखना ओझल होते तने, नख, शिख मुद्राओं से छूटते हाथ
जो नहीं हुआ होना था वृतांत और उसका विवरण आद्योपांत
बताइये बने अनमने पर तरस खाते हुए बन सजे सभ्रान्त
या कि समझें सभा के गहन में सकपकाते विकल क्लांत
एक रंग के रंगी ढली शाम आकाश, नीले नारंगी लाल हरो
खाली स्थान भरो

भरे अस्ताभ व्यस्ताभ दिनचर्या की लताएं ध्येय और निमित्त
गजर के बजने और नज़र बदलने में पलटते छाया चित्र
यहाँ भी हों और वहाँ भी आज क्या कल परसों
किसी दिन अकस्मात मतलबों की पड़ताल ज्यों से जो त्यों
ये लकीर में कितने बिंदु हैं सपाट में हैं कितनी लकीर
मेघ मालाओं में कितना जल, नियति की कमान में कितने तीर
होता भी है या नहीं तोड़ना स्वयं सिद्ध ढर्रों की तकदीर   
बिन टूटे भी बने काश तन मन जीवन विश्वास करो
खाली स्थान भरो

भरे चले जाते हैं ऐसे ही दुबके न बन पाए कहानी के हिस्से साथी
मसलन अकलपस्त भानखट्टा बतलदकोल लकझकबाती
वैसे न जाने कितने नियम से निराले आगत अनुमान
शायद के शायद हो जाने वाले ध्वनि धीमान के सामान
अजन्मे की नागरी के देव अकथ के आगोश उजागर
बक्साबंद व्यंजना में उबले अभिधा से आँख बचाकर 
शब्दपात न जाने जितने रहे आए सारे सफ़र के होश बाहर
कभी तो आएँगे फलाने के नाती जन पास, ढूंढ, खो, पाओ, धरो 
खाली स्थान भरो 

Oct 20, 2014

दुखवार आराम


कसम इतने से इतना निठल्ला रहा इन दिनों, क्या बताऊँ, चरागों को दिन में जलाया
क्या गुज़र का वहम था, अँधेरे का डर था, या लगा कुछ करूं, ना करूं मन का भाया

ऊहा की पोह चाहत नक़ल मंजर चुनी
नाम की चाशनी काम की धौंकनी
क्षीण ध्वनियों में हुंकार का इंतज़ार  
कर ले बाती दिए दाम की रोशनी

झाम चिपटा रहा, ताम लिपटा लगाया, लेप लज्जा की लपटों में, संयम भुनाया  
यूं लगा चल-निकल, राग रंग तंत्र छल रे, देख अनदेख में, मन सुना ना सुनाया

दिक् कनक की छनक बन दहक लकलकाती  
ताक पर दिख धनुक उसके कोने की थाती
दूर क्या पास है धुंधला विश्वास है
मुख तमन्ना है ऊसर में नश्वर उगाती  

उम्मीद ऋण मुक्त होने बसाया, कितने अगले दिनों नाम रख, डर बचाया
दिन के संगी बढ़े, फिक्र के जाम तारे, रोक ले फासला शाम साया ही पाया

यह यही बस नहीं बावरे का बगीचा
ना मिली बारिशें भर के खारे से सींचा
घर गरानों को कैसे बसाते समंदर 
सीखा लहरों से फेनों को सांसों में खींचा

फिर ओसारे में ठूंसे दिनों को निकाला, याद दुहरा किया मन के कोने तहाया
गया सोचने को बहुत सोचना था, खास कर वक्त जो आने वाला न आया   

चल गई बात भी बुत सी खुदगर्ज है
सांस के अर्ज़ का दिल बड़ा मर्ज़ है
अर्ज़ी मर्ज़ी के मालिक पुराने के दाता
जानो दिल का जमा है जिगर खर्च है 

क़र्ज़ रोशन जहां, शब्द घड़ियों में जाया, अब थका या पका कौन चेहरा बताया
जो न रीते या बीते में बाहर को खींचें, ऐसे दिन भी जिन्हें बीतने तक बिताया 

अपनी अपनी व्यथा अपना उपचार है
हर कथा का कथन से जो व्यवहार है
एक जरिया है ज़र्रा है तो क्या हुआ
इतनी सारी जगह छूटा संसार है

ठोस इसकी धरा है न पाओ तो माया, ये हिरन है किरन अंतरालों का साया  
पड़ के चौपड़ यहाँ रंग चतुरंग पाला, इसने सबको खिला खेल अपना खिलाया  

क्या करे ना करे ये सफ़र का खिलाड़ी
रास काँटों में निखरी जो फूलों की बाड़ी  
दूर से देखना और छूना मना है
याद आती बहुत है नदी क्यों पहाड़ी

नाम बहने का बचपन था नुस्खा बताया, बंद आँखें करो मित्र सागर मिलाया
कौन सी नींद मीठी है ये बाद में, जान लूं तो बताऊँ सुखी कौन आया   


Apr 28, 2014

चुन आओ

गुरूजी मजा मां, गुरूजी हवा मां
गुरूजी के चेला जो खौंखें धुंआ मां

गुरूजी के बारे में क्या-क्या न कहिना
गुरूजी तो राजों के ताजों के गहिना  
गुरूजी ने सादों के वादों को पहिना
गुरूजी के चेला पहिरिहैं पजामा

गुरूजी कठिन को सरल दे उड़ाएं
गुरूजी मगन को अगन दे लड़ाएं
गुरूजी बड़ी भोर बातें बनाएँ
गुरूजी के चेला आंधर कुआं मां  

गुरूजी की बरखा में जमना का पानी  
गुरूजी ने धो कर कहानी बनानी
गुरूजी कहें नभ में गंगा बहानी
गुरूजी के चेला सुक्खी धरा मां

गुरूजी जो कहिहैं, बेल्कुल न करिहैं
गुरूजी गुजर बेर, दिखिहै न धरिहैं  
गुरूजी करोड़ों के मोडों में चलिहैं
गुरूजी के चेला चवन्नी के मामा  

गुरूजी गुरूजी के भोंपू के रेला  
गुरूजी के मौसम गुरूजी के बेला
हमीं भाई चेला हमीं सब के मेला
हमीं हंस ले खेला जइबे कहाँ मां   

Feb 4, 2014

जाल और जाले

यूं अलग-थलग, सबसे अलग, सब में अलग, जग में जुदा
रह जाऊं जाँ, जन्मो-जनम, अपनी कसम, ही ले अलहदा

सब अगल-बगल, संगी विह्वल, अन्मन के दल, चाहें बता
हम भी अलग, धुन का बुना, टुकड़ा नया, लो बनी अदा 

जो यहाँ-वहाँ, न हुआ कहाँ, न कभी जहां, सब कुछ मिला
कब बहार है, क्या ऐतबार, थोड़ा इंतज़ार, कुछ गुमशुदा  

क्यों तरह-तरह , मन में कलह, मन की वजह, मन ऊबना
समझा सबब, सोचा गज़ब, निकला अजब, दिन मसविदा    

ये चमक-धमक, चहकी महक, बहकी खनक, होशियारियां
जी कर बहस, लड़ ले जिया, दम दे दिया, मद आमदा 

क्या अता-पता, किसकी खता, खत लापता, हो कर मिला
बैरंग पथ, कथ थक चले, दुःख मुख कहे, चल अब विदा