Jan 26, 2008

शब्द बौने

शब्द बौने
पायलों में रुन्झुने
ईख के गंडे चुने
हैं बड़े नटखट, सलोने
शब्द बौने

शब्द बौने
ले उडे तारे, चमाचम
चाँद, मारे आँख हरदम,
साज ताजों के बिछौने
शब्द बौने

शब्द बौने
कौंधते बिल्लौर घन
जोडें जुगत जादू जतन
पकड़ते कुर्तों के कोने
शब्द बौने

शब्द बौने
खेलते खिलते लड़कते
कात बातों को जकड़ते
क्यों लगे इस ख्वाब रोने
शब्द बौने

शब्द बौने
एक दिन साधन बनेंगे
आसमां आँगन बनेंगे
पर अभी छोटे हैं छौने
शब्द बौने

शब्द बौने
बाज क्यों ताने निगाहें
आस्था आगे की राहें
प्रार्थना ना जाए सोने
शब्द बौने

14 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

शब्दों और भावों के धनी हैं लेकिन न जाने कविता क्यों नहीं कहते आप. जिस कविता में विचार नहीं वह भूसा होती है. गेंहूं आपके पास है उसे निकालिए 'बंडे' से. धर्मवीर भारती की लाइन में मत जाइये. वह एक अन्तरराष्ट्रीय साजिश थी. सुरक्षित कविता लिखने की रणनीति हो तो आपसे कुट्टी!

Unknown said...

शब्द सुन्दर बाँध लें कविता सलोनी ।

Words are things, and a small drop of ink
Falling like dew upon a thought,produces
That which makes thousands,perhaps millions think.
Lord Byron, poet( 1788-1824)

अजित वडनेरकर said...

शब्द बौने
एक दिन साधन बनेंगे
आसमां आँगन बनेंगे
पर अभी छोटे हैं छौने
शब्द बौने

प्यारी सी बात आपने कही, और एक प्यारी सी बात विजयभाई ने भी। आप उनका कहा भी मानें मगर दिल पर न लें। बहुत अच्छी कविता है। शब्द अगर कविता में ही खिलौने बन रहे हैं तो सार्थक हैं। कुछ लोग तो बेवजह उनसे खेल रहे हैं। उन्हें हक नहीं है। न ब्लाग पर , न अखबार पर , न टीवी पर (एनडीटीवी वाले गौर करें। उनसे उम्मीदें ज्यादा हैं), न बीवी से बात करते , न दुनिया से संवाद बनाते हुए।
नाम बताऊं उन सबका ? छोडिये , आप भी जानते होंगे । अड़ोस पड़ोस के ही तो हैं सब।

azdak said...

हमारे कुर्ते का कोना न पकड़ि‍येगा, प्‍लीज़..

Tarun said...

एक दिन साधन बनेंगे
आसमां आँगन बनेंगे
पर अभी छोटे हैं छौने
शब्द बौने

हमें तो ये लाईनें बड़ी पसंद आयी

Yunus Khan said...

मनीष जी सुंदर है ये कविता । विजय शंकर की बात में सच तो है, पर आप अपनी धुन में जिन सूक्ष्‍म भावनाओं को पकड़ रहे हैं वो कमाल है । विजय की बात पर ग़ौर किया जा सकता है ।

अनिल रघुराज said...

क्या बात है!! ऐसे बामन तो ढाई कदम में तीनों लोक नाप लेते हैं। शब्दों की गूंज अब भी कानों में बज रही है... शब्द बौने

पारुल "पुखराज" said...

शब्द बौने
एक दिन साधन बनेंगे
आसमां आँगन बनेंगे
पर अभी छोटे हैं छौने
शब्द बौने
bahut sundar....mun bhaayii

anuradha srivastav said...

शब्द बौने
एक दिन साधन बनेंगे
आसमां आँगन बनेंगे
पर अभी छोटे हैं छौने
शब्द बौने

लिखते रहिये मनीष ,ये आपका अपना अन्दाज़ है।

शब्द बने हैं पहरुए
भाव -विकल से अनसूने
बांध कर देखो कश्ती
साहिल में भी हैं जलज़ले।

Manish Kumar said...

पूरी कविता आपकी पिछली रचनाओं सी जमी नहीं पर ये पंक्तियां जुरुर अच्छी लगीं
शब्द बौने
एक दिन साधन बनेंगे
आसमां आँगन बनेंगे
पर अभी छोटे हैं छौने
शब्द बौने

लिखते रहें..

अमिताभ मीत said...

क्या कहूँ मनीष भाई ! कविता लिखी है ... कमाल किया है ? बहुत ही उम्दा .... मन प्रसन्न हो गया.

Sandeep Singh said...
This comment has been removed by the author.
Sandeep Singh said...

'शब्द बौने...अभी छोटे हैं छौने' मैं देर कर गया, मुझसे पहले बहुतों ने मेरी भावना से आपको परिचित करा दिया। इस बार तो आपको अपनत्व की डांट और ढाढस दोनों मिले। पर मुझे लगता है कविता की व्युतपत्ति भाव प्रवणता के विस्फोट से होती है। उस वक्त भावना में बिना किसी लाग-लपेट के शब्द बह से जाते हैं। कई बार उन्हें रेत-मांझ कर समालोचकों के सामने भी परोसा जाता है, पर मुझे तो अभी आपका बहाव ही भाता है।

dr.shrikrishna raut said...

शब्द बौने
एक दिन साधन बनेंगे
आसमां आँगन बनेंगे
पर अभी छोटे हैं छौने
शब्द बौने
भाई मनीष,
क्या कहे इसे-
शब्दो की मर्यादा
या उनका यथार्थ।
जो भी हो है खरा खरा।
-डॉ.श्रीकृष्ण राऊत