थोड़ी मोहब्बत सभी पर उतरने दें
थोड़े करम चाहतों पर भी करने दें
सितारों की महफ़िल रहे आसमानी
ख़ुदा बंद जड़ को, ज़मीं से गुज़रने दें
बूंदों के रिसने को रोकें नहीं बस
सागर रहें, अंजुरी भर दो भरने दे
जब छूट पाएं वो फ़ाज़िल सवालों से
बैठक से बाहर, नज़र चार धरने दें
नर में नारायण, क्या ढूंढें मरासिम
का़फ़िर सनम, बुत-परस्ती तो हरने दें
खुलासा :
माना कि हमारे "बच्चे" कहीं पसंद कहीं नापसंद हैं
दोस्तों ने बात जो कही, हम ख़ुद भी रजामंद हैं
पर रेशम कहाँ से लाएं? कि हम कातते कपास हैं
अपने समय, जेबों, जिगर में यही छुट्टे छंद हैं
स्वागत एक बार फिर [:-)]
9 comments:
नर में नारायण, क्या ढूंढें मरासिम
का़फ़िर सनम, बुत-परस्ती तो हरने दें
ये लाईने बहुत सुंदर है, रेशम कहाँ से लायें हम कातते कपास हैं ये लाईनें बहुत पहले कहीं और भी पढ़ी थी।
आँखों के तारे बच्चे ,जीते रहें,
शब्द फलते रहें, फूलते रहें।
हाज़िर जवाबी का़बिले तारीफ़ है!
नमस्कार मनीष भाईसाहब,
आपका ब्लॉग देखा और कवितायेँ पढ़ कर बहुत बढ़िया लगा. रचना दीदी से आपके लेखन के विषय में पता लगा है. अब नियमित हरी मिर्च का स्वाद चखने हेतु आपके ब्लॉग पर आना जाना लगा रहगा.
शुभकामनाओं सहित
अभिनव
प्यारे भाई, गजब ढा रहे हैं। गाजियाबाद में तो मैं भी रहता हूं, लेकिन वैशाली में। मेरा फोन नंबर 9811550016 है। यहां हों और फुरसत में हों तो फोन करें...
bahut khoob...
*keep it up*
tc
~ali
Good yaar. ham bhi to tere favourate hain.Keep it up.
जब छूट पाएं वो फ़ाज़िल सवालों से
बैठक से बाहर, नज़र चार धरने दें...
बहुत खूब...."दुकान खुली मिली" ये अलग बात दुकानदार की ओर से दुकान में कोई नया सामां नहीं रखा गया, फिरभी देर आया ग्राहक खाली हाथ नहीं लौटा। नई खरीद (संवेदना की पूंजी)के लिए जल्दी ही मिलूंगा।
kya baat hai ! marhaba!
बूंदों के रिसने को रोकें नहीं बस
सागर रहें, अंजुरी भर दो भरने दे
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति.. बधाई
Post a Comment