Jul 25, 2008

जीवनसाथी

तुमको बस देखूं, तुम्हारी आँख में तारे पढूं
मुश्किलों के दिन, दियों की जोत के बारे पढूं

बन में परेशां परकटे, बादल उतर आएं जहाँ
बिजलियों के बीच बहकर, धीर के धारे पढूं

धूल उड़ बिछ जाएगी, थोड़ा सफ़र है गर्द का
ग़म समय में याद करके, याद के प्यारे पढूं

राहत मिले फ़ुर्सत करूं, फ़ुर्सत मिले राहत करूं
उलझ के ज्वर जाल टूटें, प्यार के पारे पढूं

क्या करूं क्या ना करूं, किस बात की तौबा करूं
सबसे बड़े गुलफ़ाम, तुमके नाम के नारे पढूं

इस बार से, उस पार से, हर जन्म से, अवतार से
मांग लूँ हर बार, सुख दुःख संग सब सारे पढूं

14 comments:

Udan Tashtari said...

अरे महाराज, कहाँ रहे भई इतने दिन तक बिना खोज खबर के. आज ही सुबह याद कर रहा था और आप दोपहर में दिख गये..तब सोचा कि पहले ही याद कर लेना था. :)

अब नियमित लिखिये. शुभकामनाऐं.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Sada ki bhanti, dhaara prawah, bahut sunder abhivyakti Manish bhai ........

Rgds,

L

siddheshwar singh said...

कहां रहे इतने दिन साथी !
बहुत बढ़िया!

Gyan Dutt Pandey said...

बड़े दिनों बाद मिर्च की खेप ब्लॉग बाजार में आयी। उम्मीद है आती रहेगी।

दिनेशराय द्विवेदी said...

बड़ी स्वादिष्ट हैं मिरचें, बेसन और तेल में तलने के बाद बरसात में किसी स्वादिष्ट पकवान्न को बराबर की टक्कर मार रही हैं।

azdak said...

नमस्‍ते कहने आया था.

डॉ .अनुराग said...

राहत मिले फ़ुर्सत करूं, फ़ुर्सत मिले राहत करूं
उलझ के ज्वर जाल टूटें, प्यार के पारे
ये बात बहुत पसंद आयी
अरसा हुआ आपको देखे ....कहाँ उलझे थे आप ?

बालकिशन said...

सुंदर और उम्दा रचना.
बधाई.

Sandeep Singh said...

सर, कविता के रसास्वादन से दूर रखने के लिए अभी तो प्रमोद जी की तरह मेरी भी नाराजगी झेल लें। लगातार पोस्ट के जरिए इस अवधि की भरपाई करनी ही होगी।
....आज बहुत दिनों बाद हरी मिर्च पर आ कर बेहद अच्छा लगा। कविता के बारे में जल्दी ही..।

Shiv said...

बहुत बढ़िया. वैसे ये शिकायत तो रहेगी कि इतने दिनों बाद आए.

मीनाक्षी said...

लम्बे अंतराल के बाद जीवनसाथी पर सुन्दर कविता के साथ आपका स्वागत है...

मुनीश ( munish ) said...

WELCOME BACK MANISH BHAI, WHERE HAVE U BEEN ALL THESE DAYS? THANX FOR A VERY TOUCHING POEM !

Ruchi Singh said...

kafi achachha likha hai

Manish Kumar said...

चलिए देर आए दुरुस्त आए

बन में परेशां परकटे, बादल उतर आएं जहाँ
बिजलियों के बीच बहकर, धीर के धारे पढूं

राहत मिले फ़ुर्सत करूं, फ़ुर्सत मिले राहत करूं
उलझ के ज्वर जाल टूटें, प्यार के पारे पढूं

ये अशआर कमाल लगे।