नींद का नींद में लिखना, निनलका मनगढ़न्त
और फूट जाना गुब्बारों का एक के बाद एक आँख के खुले तुरंत
फिर वही सब काम,
सब पुर्जा-पुर्जा तुरत-फुरत यन्त्र
किया कितना, दिया कितना, जिया कितना, लिया कितना, रोज़मर्रा यथागत
अत्यंत
आद्योपांत, बस जोड़ दौड़ का धुंधलका, बस घट मन की बागी डोर,
ओसार में अटकी बातें, अनागत, बनतीं बाती, कहीं ठोंके कील कठोर
स्वर खोजता अधूरा हलंत, पर्यंत भुलइयां गंतव्य का पता ठौर
और नाम-भूले बतौर, याद हैं कितनी अधूरी, अधूरे रहे आने की
किताबें अभी और
और रहे कितने तारे, गिनने को खुले आकाश घना वट अनंत ऊपर
कूचियाँ-सूचियाँ या कर पढ़ने के किस्से, भरे बक्से अटारी अंतरजाल
दिक्-देशांतर
शहर समझने की भाषाएँ, आशाएं, खाते कानून, नियम और अधिनियम,
दुःख-सुख कारण निवारण, दवा बीमारियाँ गांठें, इन्कलाब, बने-बिगड़े
तद्भव-तत्सम
गरम नरम फूल-कांटे, चिड़ियाँ चिट्ठियाँ बाँटें, ज़िंदाबाद, इतर-बितर,
वसुधैव कुटुम्बकम्
नाम अनाम समानार्थी कितने साथी, पनाहों की बदलती छांह, कितने नए
दौर
बांटने का समय छाटें कैसे, गिने कितने ऐसे, दुखते उंगली के पोर
पोर
और काम-साए शोर, लिखनी हैं कितनी अधूरी, अधूरे रहे आने की
किताबें अभी और
और बिखरा समय जो आयु की आय में, जीवन का व्यय यहीं कहीं
यही है जो है चलायमान, कदम, मान, अनुमान, खाता बही
रही आस कभी मुमकिन शुदा तय, सब कुछ में कुछ हो पाने का विनय
अनुनय
जैसे एक दिन शायद, पधारें जगद्गुरु विशारद, हों एकद विविध विषय
अव्यय पर लगातार, मेधा की रेखा के पार, लगी लीकों में बेहद विमूढ़
वलय
अनय क्षुधा के अंतराल, बहरहाल, पूरा होता नहीं, दुखद अन्वय भी पुर
जोर
होता नहीं जो पढ़ने को, कहने को, लिखने को, रिसता है बन किरन, जाती भोर
और बची शाम चोर, खोनी हैं कितनी अधूरी, अधूरे रहे आने की
किताबें अभी और
और अधूरे हम सफर पूरा लुभाता, तृष्ण मृग त्रिज्या बंधा क्या हाथ
में लाता
साथ बहता पसीना ऊब आता, पुन फुटकने रंग धब्बे छोड़ के जाता
विधाता एक दिन भी और बाकी हो ये जीवन में, तो दुनिया भर में कितने
साल आने हैं
गए की छूट के आधे, मुसलसल भाग से आते हुए औरों के खाने हैं
रहें गुलज़ार, कई हज़ार, चमचम या कटीले, हरे-पीले उगते जाने हैं
कहें जो सुलझा सुलभ पाया है धरा, बाकी रही उलझन यहीं, है क्षितिज
छत के छोर
कहाँ पूरा, कभी आकाश देखा या कहो नाचा, कहाँ से कहाँ मन का मोर
और जंगल में किशोर, फूलेंगी अभी कितनी अधूरी, अधूरे रहे आने की
किताबें अभी और.
3 comments:
अद्भुत शिल्प की भाव काव्य प्रस्तुति!
बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति..
नामवर सिंह की भाषा में कहें तो बीहड़ कविता :-)
Post a Comment