मिले जो पीर
दुनिया की, या कि दुनिया के पीर मिलें
नहीं मिलें ये
अलग से, एक मिलकर के तकदीर मिले
ये तो एकबार साथ
चले, फिर साये से भी अज़ीज़ बने
दिन ख्वाब धुन में
साथ रहे, रही रात बगलगीर मिले
थे अपने उजाले के
आईने में भी, हमशक्ल ये हमारे से
चटख स्याह हम सहारे
थे, हमें भी रंग से तस्वीर मिले
समझ कर क्या समझना,
भूलना भी नामुनासिब है
न अपनी सोच में
काबू, न चलते कहीं कबीर मिले
ये बेमतलब अलग बातें,
कभी मतलब सही बना लेवें
कोई पूछे तो
याद आए यों, जैसे राह में फ़कीर मिले
2 comments:
वाह, गहरे भाव..
सोच नाकाबू समझने आये रहेन..
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