Aug 13, 2012

बेचैनियाँ



आरे आज के चिरते, गुज़ारे कल नहीं जाते
जले रस्से तमाशों में, हमारे बल नहीं जाते

ये चिपकी राख है बेढब, जो उड़ने भी नहीं पाती
हवा में दम भी ना इतना, शरारे जल नहीं जाते

तपिश ले जा रही कितने, समंदर लहर पारों से
नदिया क्या कहूँ तुमसे, ये खारे गल नहीं जाते

तेरी मिट्टी का साया हूँ, वो सौंधी है मेरी नस में
दश्त दम तेज सूरज हो, तेरे बादल नहीं जाते 

बड़ी मायूस गलियां हैं, कोई किस्से नहीं सुनता
फ़साने अजनबी के राज़, प्यारे छल नहीं जाते 

ये सब टलते हुए अंजाम, सुबहो शाम कहते है
सवालों को सम्हालो गर, संवारे हल नहीं जाते 

न मैं हूँ वो न वो तुम हो, ये हम जैसे यहाँ बदले
काश रुखसत की घड़ियों से, उजाड़े पल नहीं जाते 

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सवालों को सम्हाल कर रखना पड़ेगा...

Rangnath Singh said...

पसंद आयी...