बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी
बहस फंसती सुबह, कारी रात होती जाएगी
रुसना रूसे मनाना, रोज़ रुकती रेल है
फ़िक्र के चक्के छुड़ाना, चल पड़े फिर खेल है
मैदान से ना भागिए, ये आप की ही बात थी
जीत हारें दुःख चले, बचता मनों का मेल है
कुछ दिनों में यह गई, बारात होती जाएगी
बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी
ये हम पढ़े वो तुम पढ़े, सुनने कहे का माल ये
नाली में थोड़ी जाएगा, संचित क्षुधा का थाल ये
इस भोग का परशाद तो, मीठा कभी खट्टा कहीं
कुछ मिर्च भी मिलवाइए, अपना बने वाचाल ये
बे-तीत के बीते में फीकी, याद होती जाएगी
बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी
यह लाज़मी कैसे है, केवल आपकी ही सब सुने
ये तुम सुनो वो हम सुने, बकताल के बक्से भरें
ऐसा खजाना हो महाशय, राज तक को रश्क हो
दौलत दिलों की जोत, भूलें रात के झगड़े बड़े
धौं देखिये दीपक ये जो, सौगात होती जाएगी
बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी
अब सब अगर हो जाएँ, अपने आप से, अटपट अजब
कुछ नया कैसे हो, अगर, बस एक सा हो सब सबब
बेहतर है थोड़ा दर्द लो, दिलफोड़ बातें भींच कर
सर्वांग आकुल विकल हों, ज्यों जब अलग की हो तलब
सबके अलग को सींच कर, ऋतु साथ होती जाएगी
बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी
चूंकी धरा अलबेल है, सच के कई अपवाद हैं
कितने मिलेंगे जहां ऊपर, कर्कटों की खाद हैं
उनका कहा सुनना गया इस कान से उस कान तक
आगे चलो प्रिय प्रेम से, कविता भरे सब स्वाद हैं
तुक काफ़िये महफ़िल, कहे आबाद होती जाएगी
बात का मानें बुरा क्या, बात होती जाएगी
6 comments:
होते रहने का क्रम सदा बना रहे..
मैं इसे अभी संपन्न ब्लॉगर सम्मलेन से जुड़े बवाल के परिप्रेक्ष्य में देख रहा हूँ :) मौलिकता से सुवासित रचना !
बहुत सुंदर
जरा सा
हट के
सी !
बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ और यह सुन्दर कविता पढ़ने को मिली. अच्छा लगा. आजकल मेरा कविता लिखना बंद हो गया है. आपकी पढकर फिर से लिखना शुरू करने का मन हो रहा है.
घुघूतीबासूती
यह लाज़मी कैसे है, केवल आपकी ही सब सुने
ये तुम सुनो वो हम सुने, बकताल के बक्से भरें
ऐसा खजाना हो महाशय, राज तक को रश्क हो
दौलत दिलों की जोत, भूलें रात के झगड़े बड़े
बहुत खूब .....
waah... sachmuch.....
kafi gahrai se..
Post a Comment