Dec 12, 2012

भटकटइया फूल


रातों का जगा सोया दिनों का भाग ले
सुख का बावरा बड़बोल दुःख की छाप से
साया कदम की पूंछ पीछे जा छुपा होगा पथिक सूना
पृथक दिक् संधि में बिखरा हुआ छूना
वो तौबा कौन रंग की सोच में ठहरा न ठहरा भागता पानी
या ऐसे ताकता मनहूस जैसे लिख अभी तारीख की कोई पुरानी
सुध कही स्मृति के ही जनमंच से वंचित हुआ विस्मृत धुंआ
झरा चूना कहीं तो पुष्टि के अपभ्रंश से चेतन हुआ
गण कण चुरा कर धूल
मन में भटकटइया फूल

सखा सीली हवा बारीक सा शातिर धुंआ आधार
आ खारा कहाँ किस स्रोत्र शठ मीठा कुआं फल द्वार
कभी जलधर से कब अंतर से अंतर्मन कड़ी के गर्भ में रिसता बता
गीली लकड़ियों का जला ज्यों गोलघर मीनार जैसा क्या पता
फिर-फिर लौट आता अंत है कोना वही कोना जो कोना था नहीं शामिल
न मानो अंत है यों बोलना जब तक मुवक्किल सांस है काबिल
मनुज सूरज नहीं है अस्त होना नामुनासिब कथ्य हकलाता
या बेकल लापता नक्शा गुमा मंतव्य चलता जा रहा गंतव्य बहलाता
विगत तूणीर से छूटी दिशा का शूल
मन में भटकटइया फूल

मुस्तकिल हो जो पूरा बोलता मिलता नहीं थोड़ा नहीं जो ना व्यथित
अवसर कलित व्यवहार में जनते है सृष्टा मानते इच्छा-जनित
मदों का व्याकरण बदले जमाने की ये लफ़्फ़ाज़ी
मधुर है या कि कर्कश सर्जना किस समय की ताज़ी
कला खुद राज़ है राही का या मथ कर  पढ़े की दो
समझ से सज बहुल में चल विधा मतलब बदलती वो
न जाने कौन से अभिप्राय, सविता तर के बन बन बोलता
मन तर्क प्रज्ञा नव तरल मंतर के उपवन खोलता
खिड़की खुले अड़ती पुरानी चूल
मन में भटकटइया फूल

पढ़ी बे नम्र दुनिया में तलब से दुनियादारी कर
करें भोले बनें भल मान लें बाहर बीमारी हर
रहें अंदर दरक दर्रे न पाकर गुम पहाड़ों के
गुहा में गूंजते स्वर स्वयं अपने पात झाड़ों से
पकड़ धरती वही मिट्टी ये डर है या भरोसा है
जिसे भर कर के परिवर्तन को अड़चन चर ने कोसा है
उसे आगे और पीछे ऊंच नीचे बात क्या करनी
हिदायत की सतह से आधिकारिक मांग है रखनी  
दिखा कर साहबों की हूल
मन में भटकटइया फूल

कहे चल-चल यहाँ से भाग चलते हैं वहाँ तक भाग जाएंगे
जहां मंदिर के घंटे फ़ज्र के पल ना सताएंगे
कहाँ ऐसा मिलेगा शर्तिया मन को रिझाना है
गमन चुटकी का सपना है पलक से फूट जाना है
जो अपना है यही जंगल है कंटक वर्ष है इस खेल में मैदान सर
जमे मंज़र हैं तन्द्रा में सजे निद्रा में जितने ख्वाब के एहसान पर
किए तो कुछ तो सच होंगे मुए सपने रहेंगे बड़े सारे रह
कचोटेंगे खड़े हो कर बजा मन कारणों की तह
तहाएंगे गए की चूक वा की भूल
मन में भटकटइया फूल