मियाँ छोटे जनमते हैं, कई अल्ताफ़ होते हैं
सुबह की सरहदों
में, फुदकते अल्फाज़
होते हैं
उन्हें मालूम
क्या, होना न होना, है न आगे क्या
सफ़र रोचक नहीं
होता, न जिस में, राज़ होते हैं
खुले आँगन के
पट्ठे, काफिलों में चहचहाते हैं
होश में जोश में कट्ठे, कायदे काज़ होते हैं
वक्त से इल्म की
बीमारियाँ, फलती हैं आँखों में
करों के जोड़ मन
गुइयाँ, प्रश्न जंगबाज़ होते हैं
खुले बढ़ते हैं
लंबे बाल, सूरते-हाल,
चालों पर
खड़े गतिबोध, और
प्रतिरोध, नक्शेबाज होते हैं
सफ़ों से फूंकता
है मन, मनन में आंच
सरगर्मी
दिखे उखड़े, जहां बिखरे, सखत आगाज़ होते हैं
तरंगें सर उठाती है, रगों में बिजलियाँ बन कर
फेन आदर्श सड़कों पर, बदल के साज़ होते हैं
नहीं रुकते सभी सुर एक, ढलते हैं लकीरों में
फकीरों से,
शहर भटके, अमल परवाज़ होते हैं
कभी के मोड़ ज़ाहिर, आसमानों के गिरेबाँ पर
जहाँ पर फाख्ता के साथ, उड़ते बाज़ होते हैं
समय संजोग, जिम्मेदारियां, पकड़ा ही देते हैं
उसी से छूटते, कुछ जो, गुज़र के नाज़ होते हैं
ये पूरा खुश कोई, रहता किताबों में, कहां वो भी
हिसाबों में मयस्सर, जिस को तख्तो-ताज़ होते हैं
कई दिलचस्प क़दमों से, तिलिस्मों की ज़मीनों में
जिसिम ज़िंदा वो
कैसे, किस किसिम, जांबाज़ होते हैं
वो रोज़ाना में लिपटे हों, तो कपड़ों में नहीं जाना
किसी सलवट के
अंदर, नम ज़मीं के राज़ होते हैं
वो ऐसे थे नहीं, ना वो रहेंगे, इस तरह, हर दम
धनुक के रंग भर
कर, दोस्त जो, अंदाज़ होते हैं
वो लड़ियाते हैं, लड़ते हैं, वजह से ठोकते हैं जो
अब आखिर दोस्त
हैं, बेबात भी, नाराज़ होते हैं
चलो बतला दें, उनको दूर रह कर, दूर भी न हों
उन्हीं का हौसला, वो नूर की, आवाज़ होते हैं
3 comments:
बहुत ही दमदार अभिव्यक्ति..
वो लड़ियाते हैं, लड़ते हैं, वजह से ठोकते हैं जो
अब आखिर दोस्त हैं, बेबात भी, नाराज़ होते हैं
बहुत खूब
kya kahu..janab adbhut shabd bhee kam pad raha hai
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