आसमां का रंग बदहवास आसमानी क्यूं है?
अमां इसी बात से कचहरी में परेशानी क्यूं हैं?
लौट आयेंगे सब तारे वो अँधेरा तो मुंह ढले
छुप छुप के ओट बैठी ये नौजवानी क्यूं हैं ?
हम हाथों में बरक़रार है सांसों की नर्म साख
कजरे की तहें सोख के ये गरम पानी क्यूं है?
हाँ हम रहेंगे उम्र भर तक इस भरम सही
तो हर करम की उम्र अब तक सयानी क्यूँ है ?
सामान तो समेट के रख लें हर ज़िंदा पल
किस कल जिलाबदर हो ये कहानी क्यूं है ?
5 comments:
आपके ब्लाग पर पहली बार आई हूँ और बहुत अच्छा लगा.आपकी भाषा और कल्पना बहुत सश्क्त है.
हम हाथों में बरक़रार है सांसों की नर्म साख
कजरे की तहें सोख के ये गरम पानी क्यूं है?
ये पँक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
बहुत खूबसूरत लिखा है। यू.ए.ई. के ब्लागर्स की एक मीटिंग इस शुक्रवार यानि 14 दिसम्बर को शाम 4 बजे दुबई में निर्धारित की है। आपकी उपस्थिति अपेक्षित है। इस संदर्भ में आप हमें मेल के द्वारा सूचित कर सकते हैं। ई पता reply_arbuda@yahoo.com है.
सामान तो समेट के रख लें हर ज़िंदा पल
किस कल जिलाबदर हो ये कहानी क्यूं है
वाह वा...... मेरा एक शेर है...
"तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाढ़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो?
नीरज
रजनी, अर्बुदा, नीरज भाई, स्वागत और धन्यवाद,
खानाबदोशों की ज़बान ही कुछ ऐसी है | मोना और मैं अभी कुछ दिन पहले ही बतिया कर रहे थे के पिछ्ले तेरह सालों में ये पहला मौका है कि हमने एक छत के नीचे तीन साल गुज़र दिए,
नीरज भाई शेर बहुत ही उम्दा है, आदतन ...
...इन कनातों को बस, इसी उम्मीद से ठोंका
कि इस गहरे ठहर में दूर का सामान हुआ तो?...
जोशिम भाई बहुत खूब....
आपकी अपने बारे में टिप्पड़ी पढ़ी, तारीफ हर किसी को अच्छी लगती है सो मुझे भी अच्छी लगी, पर यकीन माने तो आपके तारीफ के लफ़्ज दिल को छू गए। आपने लिखा था कि कुछ कविताओं में आपको संवेदना जाती लगी। मुझे लगा गर संवेदनाएं एक जैसी हो सकती हैं तो जोशिम भाई के 'बकौल' में मुझे बहुत कुछ मिल सकता है। जब बलॉग पे आया तो कजरे की तहें सोख चुका गर्म पानी तो मिला ही साथ ही मिली रिश्तों में रची बसी सोंधी खुशुबू और बच्चों की मुस्कुराहट लिए जोशिम की एक निश्छल छवि। अभी आपको काफी पढ़ना है।...जारी रहेगा। धन्यवाद।
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