Dec 31, 2007

अरब, शंख, पद्म शुभकामनाएँ

एक जाता हुआ साल - ३ बहुरि थके देसी शेर - अरब, शंख , पद्म शुभकामनाएँ - एक गपोड़्शंख


वहां सो चुकी है रात, या मौसम सिंदूरी है
तुम्हारे और मेरे बीच, बस बातों की दूरी है

आधे से अधूरे छू गए, थोडी सी बक-बक में
जो रह गए वो मनचले फेहरिस्त पूरी है

इस साल की मीयाद का दम ख़म खतम सा है
नए साल खुश रहना बहुत .. बहुत .. ज़रूरी है


शुभ कामनाएं २००८ की - मां, कार्तिक, किसलय, मोना, मनीष

5 comments:

मीनाक्षी said...

बहुत खूबसूरत रचना.... आपको और परिवार को नए साल की ढेरो शुभकामनाएँ ...

dr.shrikrishna raut said...

भई वाह!

‘इस साल की मीयाद का दम ख़म खतम सा है
नए साल खुश रहना बहुत .. बहुत .. ज़रूरी है’
ऐसी जरूरी बात के लिए
थोडी खुशी हमारी आपके लिए शुभ कामनाओ के साथ साथ।
-डॉ.श्रीकृष्ण राऊत

Unknown said...

थकी देशी शायरी तो नहीं, कुछ अपनी रफ़्तार से थम थम सी चलती / उस पर ज़्यादा असर पहली दो पंक्तियाँ करतीं।

archanadhyani said...

kya ham jaldi hi achi hindi kavitaon ke snkalan ke prakashit hone ka intzar karen.bahut si shubhkamnaon ke saath.
archana

Pravin Dubey said...

आपका ब्लॉग पसंद आया....
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-