Aug 15, 2008

एक दिन/ रात आज़ाद

रात के सफ़र कटें, आख़िर सफ़र बयान बने
तुम बनो, हम बनें, काश हिन्दोस्तान बने

सिर्फ़ इतना ही गुलामों ने आज़ादों से कहा
शायद इस साल, कुछ और नए इंसान बनें

किले कीलों से जड़े हैं, महफिलें मस्तूलों में,
यही कहना है, थोड़ी बेहतर सी पहचान बने

वो ही चेहरे हैं ज़र्द, थामे हुए हैं झंडों को
कहाँ उन्हें रंग मिलें, गर्द पे मुस्कान बने

बढ़त की बाढ़ बड़ी, आला दफ्तरों से आती हैं
थाना कचहरी की है, कि कैसे यहाँ ईमान बने

इतने सालों से यही सुन के, कब उकताएंगे
मेहरबां ऐसे हालात से,आप अब परेशान बनें

[.. आज़ादी की जितनी भी शुभकामनाएं हो सकती हैं ,उनके साथ उतनी ही चेतन संवेदनाएं भी ... ]

28 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब!! वाह!


स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें संग्राम
जन की आजादी लाएँ।

Tarun said...

तुम बनो, हम बनें, काश हिन्दोस्तान बने

hindustan banne ke baad

hum bane, tum bane ek duje ke liye

शायद इस साल, कुछ और नए इंसान बनें

bahut khoob

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

चेतन सँवेदना का ज्वार उठे !
वँदे मातरम !
- लावण्या

Shiv said...

बहुत बढ़िया...
स्वतन्त्रता दिवस पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं भैया..

mamta said...

स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।

azdak said...

खूब.

हालत सुधर जाये इतनी कि आप-हम अब कुछ बेईमान बनें, या फिर हो बदतरी ऐसी कि हर ओर घमासान ठनें..

समय चक्र said...

आजादी पर्व के अवसर पर बधाई और शुभकामना

रंजू भाटिया said...

रात के सफ़र कटें, आख़िर सफ़र बयान बने
तुम बनो, हम बनें, काश हिन्दोस्तान बने


सही लिखा है आपने ..आजादी पर्व की बधाई

राजीव रंजन प्रसाद said...

सिर्फ़ इतना ही गुलामों ने आज़ादों से कहा
शायद इस साल, कुछ और नए इंसान बनें

वो ही चेहरे हैं ज़र्द, थामे हुए हैं झंडों को
कहाँ उन्हें रंग मिलें, गर्द पे मुस्कान बने

आज के दिवस के अनुरुप ही बेहतरीन प्रस्तुति।


स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।


***राजीव रंजन प्रसाद

www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com

आस्तीन का अजगर said...

अजगर आज सुबह से यही सोच रहा था कि परेड, जूतों की ताल, बैंड, पड़ोस के टीवी पर चलता प्रधानमंत्री का भाषण, कौमी तरानों के जोशो-ज़ुनून और शोर शराबे के बीच क्या कोई तमीज का मनुष्य हो सकता है? शायद हां. कई दिनों बाद इस ब्लॉग पर आकर ऐसा लगा..

डॉ .अनुराग said...

रुक सा गया हूँ ओर शायद चलने में वक़्त भी लगे ....अजगर साहेब ने सही बात कही है.....आप ने कागजो में कई चीजे साथ रख दी है.....



वो ही चेहरे हैं ज़र्द, थामे हुए हैं झंडों को
कहाँ उन्हें रंग मिलें, गर्द पे मुस्कान बने

बढ़त की बाढ़ बड़ी, आला दफ्तरों से आती हैं
थाना कचहरी की है, कि कैसे यहाँ ईमान बने

इतने सालों से यही सुन के, कब उकताएंगे
मेहरबां ऐसे हालात से,आप अब परेशान बनें

Ashok Pandey said...

आपकी पोस्‍ट और तरुण जी का कमेंट, दोनों के क्‍या कहने।
आपको भी आजादी की संपूर्ण संवेदनायुक्‍त शुभकामनाएं।

अमिताभ मीत said...

"तुम बनो, हम बनें, काश हिन्दोस्तान बने .."

"शायद इस साल, कुछ और नए इंसान बनें.."

बहुत बढ़िया मनीष भाई ... हमेशा की तरह .... लेकिन यहाँ तो हम भी और तुम भी - बन रहे हैं या बना रहे हैं ... रचना बहुत सुंदर है .... और उतनी ही वन्दनीय है इस देश के लोगों की सोच .... आज ६१ साल बाद भी सोच बढ़िया रखे हैं .... देश का चाहे जो हुआ हो ....
बहरहाल इस दिन पर शुभकामनाएं ...

Unknown said...

चेतन संवेदनाएं और शुभकामनाएं : यह ख़याल नवेला है |और.. यदि यह कविता रची गयी है तो इसके आगे नयी संभावना भी.....

Gyan Dutt Pandey said...

बने - यह तो हसरत है मित्र! पर कैसे बने, यह पता तो चले!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आज़ादी का मंत्र जप रहे ब्लॉगर भाई।
मेरी भी रख लें श्रीमन् उपहार बधाई॥

मीनाक्षी said...

यही कहना है, थोड़ी बेहतर सी पहचान बने
-- कैसे बने बस इसी पर सोचना है और मेहनत करनी है..
देर से ही सही ... आज़ादी के दिवस पर मंगलकामना

Manish Kumar said...

सिर्फ़ इतना ही गुलामों ने आज़ादों से कहा
शायद इस साल, कुछ और नए इंसान बनें

wah ! achchi soch lagi aapki

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब!

dr.shrikrishna raut said...

वो ही चेहरे हैं ज़र्द, थामे हुए हैं झंडों को
कहाँ उन्हें रंग मिलें, गर्द पे मुस्कान बने

आज़ादी की (और कितनी) शुभचेतन संवेदनाएं।

art said...

"तुम बनो, हम बनें, काश हिन्दोस्तान बने .."

"शायद इस साल, कुछ और नए इंसान बनें.."

बहुत सुंदर

Sandeep Singh said...

सर, वापसी का इंतजार है....
माफी 'सर' से शुरुआत के लिए...
बस यूं मोहभंग की वजह बता दीजिए... :)

अजित वडनेरकर said...

तुम बनो, हम बनें, काश हिन्दोस्तान बने

अजी आप तो लौट आओ। दो महिने हो गए हैं। उम्मीद है सब खैरियत होगी।
शुभकामनाएं....

श्रद्धा जैन said...

इतने सालों से यही सुन के, कब उकताएंगे
मेहरबां ऐसे हालात से,आप अब परेशान बनें

ab iski hi zarurat hai

Zoshim ji umeed hai jald hi aapki kalam phir chalegi

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

मैं सोचता हूँ अक्सर हमारी सही पहचान बने
इसके लिए जरुरी है हम भी सही इंसान बने !!

Unknown said...

good one...
which application are you using for typing in Hindi..? when i was searching for the user friendly Hindi typing tool...found 'quillpad'...do u use the same..?