Oct 31, 2010

निशाचरण

यों इत्ते सा कड़वा है काफ़ी गुलाबी, ओ मन इससे ज्यादा न करना कसैला
रे दुखवा रे जा जा ओ रतिया के छैला

रे  जा जा  बहस का  गगन खुरदुरा है
उमस   का  गहन  लोपता  फरहरा है
खोले आँखें  तमस की पहर तीसरे में
गजर  का  वजन   गाज  का दूसरा है

ये टिकटिक की घड़ियाँ हैं भारी प्रभारी, विभा का समय चूर दिखता है मैला
रे दुखवा चला जा ओ रतिया के छैला

रे जा  अब कभी और जा  कर  सुनाना
सजा का  तरन्नुम  विषादों  का  गाना
उठा  सब  तमाशा,  हताशा  की  भाषा
फसक का फ़साना, यही  बस  बजाना

साज़ पकडें कहाँ  सुर लगा दूसरा जी,  लो जी भर  गया  नाद तनहा बनैला
रे दुखवा रे गा जा ओ रतिया के छैला

रे जा  ना   उठा  जा  रे  गल्ले से  छल्ला
ये  हल्ले में  हल्ला  ये  इल्मों का इल्ला
घिस-घिस गिला पिस मिला हाथ में जो
जुड़ीं  चार  दमड़ी   झड़ा  एक  अधिल्ला

अन्धेरे   उगलते  अठन्नी  का  मीठा,  बढ़ा  खून  चीनी,  खिलाते  करैला
रे दुखवा जिमा जा ओ रतिया के छैला

रे  जा  भाई रे,  थक   गए  जाग के  दम
गिने  कितने  गिरते  दिनों  में  मुहर्रम
निशा  दीप  में   याद  की ज्योतियों  में
मोतियों  सीपियों  सागरों  में जमा गम

मनन  से  कई  देव दानव  निकाले,  सुधा की  सुराही  पे  छींटा  बिसैला
रे दुखवा पिया जा ओ रतिया के छैला

रे जा कर न जा,  रह  भी जा धुन्धपाती
यूं  भर-भर   बढ़ा  जा, कलेजे की थाती
रात साथी   है तू,  कूचे  लम्हों  के बाबा
अजूबा   खुशी,   बात   आती   है  जाती

सरापों  में  बुलबुल  सियापों  से  मेला,  महाकाल  अंतिम बसेरा उजेला
रे दुखवा न जा रह जा रतिया के छैला

..रे दुखवा  न  जा  छोड़  जा ना अकेला
..रे दुखवा सुला जा ओ रतिया के छैला
..रे दुखवा..

1 comment:

Unknown said...
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