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जो ग़म पूछें उन्हीं से हाल, वो कुछ यूं बताए हैं.
जहां तुम थोक में मिलते, वहीं से ले के आए है.
बलाएं भी बिरादर इस तरह, संग राह है प्यारे,
पनाहों में पता चलता, कहर पहले से आए हैं.
उन्हें रातों के बारे में, खुदा मालूम कुछ ना हो,
जिन्हें लगती मुसीबत है, वो कैसे दिन बिताए हैं.
अभी दिखता नहीं नासूर, काँटा है हिजाबों में,
गए वो अक्स अक्सर, आईनों में चिरमिराए हैं.
इन्हीं हालात से, नाज़ुक बने हैं हाल इस माफिक,
कहीं छोटे से छोटे शब्द, बढ़ कर दिल चुभाए हैं
बुरा ना मानना, उनको लगेगा वक़्त चलने में,
जो पिछले पाँव छालों के, चकत्ते काट लाए हैं.
वो वैसे हों न हों, जीवन उन्हें गुलज़ार रख लेगा,
यही दुनिया है, ज़िम्मेवारियां बरगद के साए हैं.
कभी लेकिन अचानक आप बहता है, हुआ यूं क्यूं,
पलक भर पोंछ ले वो फिर, पलट कर मुस्कुराए हैं
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
जो ग़म पूछें उन्हीं से हाल, वो कुछ यूं बताए हैं.
जहां तुम थोक में मिलते, वहीं से ले के आए है.
बलाएं भी बिरादर इस तरह, संग राह है प्यारे,
पनाहों में पता चलता, कहर पहले से आए हैं.
उन्हें रातों के बारे में, खुदा मालूम कुछ ना हो,
जिन्हें लगती मुसीबत है, वो कैसे दिन बिताए हैं.
अभी दिखता नहीं नासूर, काँटा है हिजाबों में,
गए वो अक्स अक्सर, आईनों में चिरमिराए हैं.
इन्हीं हालात से, नाज़ुक बने हैं हाल इस माफिक,
कहीं छोटे से छोटे शब्द, बढ़ कर दिल चुभाए हैं
बुरा ना मानना, उनको लगेगा वक़्त चलने में,
जो पिछले पाँव छालों के, चकत्ते काट लाए हैं.
वो वैसे हों न हों, जीवन उन्हें गुलज़ार रख लेगा,
यही दुनिया है, ज़िम्मेवारियां बरगद के साए हैं.
कभी लेकिन अचानक आप बहता है, हुआ यूं क्यूं,
पलक भर पोंछ ले वो फिर, पलट कर मुस्कुराए हैं
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
42 comments:
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
-वाह, बहुत उम्दा!!
जो ग़म पूछें उन्हीं से हाल, वो कुछ यूं बताए हैं.
जहां तुम थोक में मिलते, वहीं से ले के आए है.
बहुत ही सुन्दर।
कभी लेकिन अचानक आप बहता है, हुआ यूं क्यूं,
पलक भर पोंछ ले वो फिर, पलट कर मुस्कुराए हैं
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
बहुत खूबसूरत गज़ल
यही दुनिया है, ज़िम्मेवारियां बरगद के साए हैं.
यही दुनिया है, ज़िम्मेवारियां बरगद के साए हैं.....
गजल बढ़िया उतरी है। बधाई।
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
बेहद खूबसूरत !
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
बहुत ही खूबसूरत !
कभी लेकिन अचानक आप बहता है, हुआ यूं क्यूं,
पलक भर पोंछ ले वो फिर, पलट कर मुस्कुराए हैं
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
bahut sunder bemisaal gajal.bahut badhaai aapko .
please visit my blog.thanks.
कभी लेकिन अचानक आप बहता है, हुआ यूं क्यूं,
पलक भर पोंछ ले वो फिर, पलट कर मुस्कुराए हैं ...
आज तो जोशी जी पहुँच गए हम भी आपके ब्लॉग ... उस दिन की मुलाक़ात और आपकी रचनाओं का स्वाद ... दोनों का नशा उतर नहीं पाया है अभी तक ... उस पर करोके का इन्तेज़ार ...
आशा है जल्दी ही मुलाक़ात होगी ...
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
बहुत ही बढ़िया.
कभी लेकिन अचानक आप बहता है, हुआ यूं क्यूं,
पलक भर पोंछ ले वो फिर, पलट कर मुस्कुराए हैं
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
वाह .. बहुत ही खूबसूरत शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
bar bad padhne ko dil kiya is gazel ko.
har sher laajawab. umda gazal.
आपका ब्लॉग पसंद आया....
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
बहुत खूबसूरत गज़ल
dukho ke sath jine ka maja kuch aaur hota hai,isi ki rah se insan manzil tak pahunchtey hain|
tuka ram verma
इस बीच बस ऑफिस का होकर रह गया हूं...कम्बखतों ने निजता का कोई कोना नहीं छोड़ा...खुद लिखने की मोहलत तो फिलहाल मिलती नहीं या कहें क्षमता ही नहीं रही लेकिन टिपियाने पर भी लगता है पाबंदी लगा दी है कई बार कोशिश की लेकिन ऑफिस में बैठे ऐसा संभव नहीं हो सका और घर लौटकर 'जिजीविषा' के संघर्ष का वक्त भी कम नजर आता है...लेकिन आप काबिले तारीफ है क्योंकि जि..जी..विषा के संघर्ष तले भी आपने सहन की नींव खुद के लिए ही नहीं संवेदनशील साथियों के लिए भी बचाकर रखी है...दुआ यही कि आपके शब्दों की सीमेंट कभी न सीले:)
सचमुच पूरी गजल बिलकुल ताजी औऱ बहुत अच्छी लगी।
Bahut bada jhola chahiye thok me saman lane ke liye. Khuda ka Shultz Ada karo bhai.
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है !
bahut hi sundar manmohak gazal dil ko chuta hai hai sher khaskar akele agar.......
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
ये पंक्तियाँ छू गयीं...अपनी फेसबुक वाल पे शेयर कर रहा हूँ....
लाजबाव,उमदा और दिल को छु लेने वाला...बहुत ही अच्छा...
मनीष जोशी जी ,
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
बढ़िया रचना |
कृपया मेरी भी रचना देखें और ब्लॉग अच्छा लगे तो फोलो करें |
सुनो ऐ सरकार !!
और इस नए ब्लॉग पे भी आयें और फोलो करें |
काव्य का संसार
आदरनीय मनीष जोशी; जी ,आपकी सभी रचनाये बेहद अच्छी व् किसी न किसी विषय को उठाती है सौभाग्य से पढने को मिल गयी ,आपने निवेदन है की एक मार्ग दर्शक के रूप में (एक प्रायस "बेटियां बचाने का ")ब्लॉग में जुड़ने का कष्ट करें
http://ekprayasbetiyanbachaneka.blogspot.com/
बहुत सुन्दर जज्बात ..आनंद आया प्यारी रचना
भ्रमर ५
इन्हीं हालात से, नाज़ुक बने हैं हाल इस माफिक,
कहीं छोटे से छोटे शब्द, बढ़ कर दिल चुभाए हैं
बुरा ना मानना, उनको लगेगा वक़्त चलने में,
जो पिछले पाँव छालों के, चकत्ते काट लाए हैं.
आपके लेख समाज की भावना की अभिव्यक्ति है. हम आपको आपने National News Portal पर लिखने के लिये आमंत्रित करते हैं.
Email us : editor@spiritofjournalism.com,
Website : www.spiritofjournalism.com
uncle ji pranam,,
bahut achhi rachna padhne mili,, sadhuwad,, plz mera blog padhkar comment karen,,
sproutsk.blogspot.com
क्या बात है! खूबसूरत..
क्या बात है! खूबसूरत..
"बुरा ना मानना, उनको लगेगा वक़्त चलने में,
जो पिछले पाँव छालों के, चकत्ते काट लाए हैं."
बहुत खूबसूरत !
bahut hi sundar ...aapke blog tak pahuch kar accha mahsus kar raha hun .
खूबसूरती से लिखी हुई रचना
--सुनहरी यादें--
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-वाह, बहुत उम्दा!!
pahli baar aapnke blog par aana hua...charcha manch ko hardik dhnywad..behtarin ghazal ke liye hardik badhayee aaur apne blog par sadar amantran ke sath....aap ek shayer hain..meri ghazal par bhee apna sujhav dene ka kast karein..mujhe ummid hai ,,,
वाह !!!! बहुत उम्दा!! !
जो ग़म पूछें उन्हीं से हाल, वो कुछ यूं बताए हैं.
जहां तुम थोक में मिलते, वहीं से ले के आए है
बहुत ही उम्दा गजल है...बधाई!!
sundar gazal .............
अकेले गर जो होते घर, तो ढह जाते बहुत पहले,
ये नेमत है सहन की नींव को, साथी बचाए हैं.
बेहतरीन गजल,बधाई,आभार!
khuda kare jore kalam kuch aur jyada.
saral kintu naye, shabdon se hriday me utarne wali prastutiyan. sadhuwaad.
वाह जी बहुत बढ़िया
बेहतरीन...
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