Jul 20, 2012

लापता मसरूफ़

(१)
कड़ियाँ ये जोड़-जोड़ के सांकल बना लिए
फिर इर्द- गिर्द द्वार दर ताले लगा लिए

लहरों से ज़रा खौफ़ उफ़नने का जब लगा
झट तट हवा  को रोकने वाले लगा लिए

रुकती सदा में गंध महक थी खिलाफ़ की
तब  आस पास नींद  के जाले लगा लिए

नीदों की राहतें अमल सपनों की आदतें
कुछ धुंए और थोड़े से ये प्याले लगा लिए

तुम भी बने रहना मियाँ ऐसे मिजाज़ में
इस बात पर  टीके  कई  काले लगा लिए

जैसे उठे, दुनिया बदल को देख लेंगे तब
फ़िलहाल यूं मसरूफ़ हवाले लगा लिए

(२)

ना-मालूम रदीफ़ ना-फ़िक्र काफ़िया है
हिसाबों में रोगन, यूँ  ही भर  लिया है

यूं रंगों की रफ़्तार कातिल है जानिब
बखत ने जो करियन सुफैदा किया है

हमारी  न  मानो  ये  सारी  की  सारी
रोज़  रोज़  थोड़ी  बदलती  दुनिया है

दुनिया के बारे में फ़ाज़िल  ही  जानें
अपना सफ़र सबने खुद ही जिया है

इतनी  मोहब्बत  से  बांटी  नसीहत
साहिब समझते  फसक का दिया है

4 comments:

पारुल "पुखराज" said...

तुम भी बने रहना मियाँ ऐसे मिजाज़ में
इस बात पर टीके कई काले लगा लिए

badhiya hai khuub ...

प्रवीण पाण्डेय said...

नीदों की राहतें अमल सपनों की आदतें
कुछ धुंए और थोड़े से ये प्याले लगा लिए

बहुत खूब

Madan Mohan Saxena said...

ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई, सादर वन्दे,,,,,,,,,

http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/

anil kumar gupta said...

NICE, ISI TARAH JANAAB LAGE RAHIYE