Aug 7, 2012

हंसध्वनि



[ उर्फ़ मोह-दृष्टि द्रोह-दृष्टि बब्बन उवाच ]

....राजहंस की खबर सुनी है आने वाला है

श्वेत धवल है, कहते हैं वो, कहीं छींट की स्याही उस पर, नहीं ठहरती
इतना उजला, चपला शायद, वही पंख ले, धरा उतरती
रोज़ नहीं आता डब्बों में भरे खचाखच लगे धकाधक
टेढ़ी मेढ़ी रेल पेल से कितना ऊपर उड़े चकाचक
उनका जैसा नहीं, रंग के, बैठ गए जो इस जहान में
असली खालिस, शुद्ध बना है, मिस्टर वो तो आसमान से
बादल संग सुकून सुधा बरसाने वाला है
कलुष मनुज कहते है वो धुलवाने वाला है

इतनी सारी उम्मीदें आशाएं उसके आने पहले यहाँ हो गईं
अनदेखों में बदल की बातें उंगली बित्ते जमा हो रहीं
दृढ विश्वास भरा है उन्नत ग्रीवा उसकी असली है
उसके आने के भय से मोरों की हालत पतली है
भीड़ नहीं भगदड़ से फैले, जाते किस्से नीर क्षीर के
वो आएगा ठीक करेगा, सब मुरीद हैं नए पीर के
देखा भाला नहीं मगर बतलाने वाला है 
नल के से वरदानों को घर लाने वाला है

इसी लिए बेदाग़ मानते, शायद, दिखता नहीं दूर से
और पास आने पर, जायज़, चुंधिया जाएं नयन पूर ये
तब देखेंगे, डैने कितने, खर पतवार कटाएंगे
कितने सपने, सच होंगे, या फच से फट हो जाएंगे
क्या किसान की बात सुनेगा, या कुम्हार की सोचेगा
या फिर पंख सजाने को, बाकी की बाड़ी नोचेगा
मोती चुगना उड़नखोर क्या खाने वाला है
उतरेगा नीचे या बस मंडराने वाला है

बब्बन सम्मत नहीं विषय से अलग थलग से रहते हैं
फटी हुई तहमद से अपना मुंहय पोंछते कहते हैं
तुलसी बाबा कहे रहे वा चेरि छांड़ि के बात
उहय मिली हर आज़ादी माँ, उहय सांझ दिन रात  
बाकी-झांकी फाका-मस्ती सावधान-विश्राम
फांकी चीनी काम नाम की सो मीठा परिणाम
मेहनत करने वाला चख कुछ पाने वाला है
उड़ने वाला चुगते ही छक जाने वाला है

इतने सारे परमहंस देखे जो आए बटोर गए
और हाशिए पर जमघट में हाजिर कितने नए नए
कोई काटे जात नाम, मज़हब पर कोई बाँट करे
कोई आधी अकल लगाए, कानूनन गुमराह करे   
सभी लड़ें पैसों के बल पर, जिन्हें लूट ने लेना है
जिसका जिसने लिया उसी को, सूद बाँध कर देना है
जब चांदी जितवाय, न्याय मर जाने वाला है
नियम नया क़ानून, कसम घबराने वाला है

हंस हवा में रहा तभी, सब कहते हैं, कस अच्छा है
तनिक भुईं में आय, कहेंगे, चिड़िया का ही बच्चा है
ये बब्बन की बात रही, है नहीं जरूरी, आप सुनें
आँखें खोले, जांच देख कर, अपनी मर्जी छाप चुनें
किसने देखा चमत्कार, सरकार भूल का जंगल है
सभी वाद कुछ खोट भरे, हर शुभ में थोडा मंगल है
ऐसा क्या कम चोर ही कम हरजाने वाला है
हर्ज़ नहीं कुछ नया बने जो आने वाला है

वैसे दुनिया भर का, जैसा, हाल बताने वाला है
बड़े खड़े जो देश, वहाँ भी, चकमक घोर घोटाला है  
सभी समंदर नमक भरे, खारों का खर तर जाला है 
बनने वाले बहुत जहां पर, तेज बनाने वाला है
मन है जब तक चाह, दर्द रह जाने वाला है
सा रे ग प नि सा जैसा, गाने वाला है  
अभी दो पहर ताली दो वो आने वाला है
अपना तम अपने भ्रम से बन जाने वाला है

...और राजहंस की खबर सुनी है आने वाला है ....

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर उद्गार हैं, राजहंस आने वाला है।

अजित वडनेरकर said...

कैसी अद्भुत अभिव्यक्ति है!!!
'वो आएगा ठीक करेगा, सब मुरीद हैं नए पीर के'
एक एक पंक्ति गुनने लायक है । आपके राजहंस में चाहे कैसी भी व्यंजना हो,
मगर हमारी नज़र में शब्दों के राजहंस तो आप है ।
सुंदर कविता के लिए बधाई ।

Barun Sakhajee Shrivastav said...

gun gunati aslo chokhi kavita