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इस बार बैठे ख्यालों में रंग नमकीन नहीं
मेरी शोहरत के बवालों में, संग दूरबीन नहीं
पास की नज़र में, लग लगा काला टीका
उम्र रौनक की सही, पर इतनी बेहतरीन नहीं
पैर बिवाईयों के जोर ही चलें, ओस की सरहद
नाक के नुक्कड़ की किस्मत, तमाशाबीन नहीं
शोर कितना करे ये जोश, मगज मारी के चले
जुबां की चुप पे सगे गोश्त की संगीन नहीं
आज इरादे को मेरा जिस्म सोख ले कैसे
जिस पसीने में तेरी सोच नाज़नीन नहीं
ए सबर मालिक, के नींद अभी बाकी है यहाँ
ये खबर के अजगर की रूमानी आस्तीन नहीं
आज अभी दिल नहीं दो उँगलियाँ उठाने का
वरना इस सोच की आज - अभी आमीन नहीं
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इस बार बैठे ख्यालों में रंग नमकीन नहीं
मेरी शोहरत के बवालों में, संग दूरबीन नहीं
4 comments:
आस्तीन का अजगर खुद को किस कदर अमर महसूस कर रहा है आपके शेर के बाद, आपको अंदाजा न होगा. पहले तो वह तो हंसता रहा. और फिर ये देखकर कि इतने कम दिनों में इतनी सारी दूब उग आई है, इस बागीचे में भी सुखद आश्चर्य की मुद्राएं बनाने लगा. खुसी की बात ये भी है कि आपके पास मीटर है, विलुप्त होने से बचे हुए बहुत सारे शब्द हैं, जो आपमें अपने अर्थ और मीटर दोनों ढूंढ और पा रहे हैं. अजगर का मीटर तो दिल्ली के ऑटोरिक्शों की तरह खरीदने से पहले ही बिगड़ गया था, इसलिए आपके लालित्य और फालित्य दोनों पर रश्क होता है. आपको भी ये सब लिखकर मज़ा आ रहा होगा. अहसासों को बांट पाना कितना बढ़िया इवॉल्यूशनरी मेशर है और न बांट पाना कितना बड़ा नर्क. अर्थ और मीटर समेटे हुए शब्द ये बात जानते हैं.
शुक्रिया बरखुरदार ( हालांकी शक ताज़ोर है - चूंकी इस पाप की जड़ को उकसाने में तुम्हारा नाम खुदा है / खोदने में तुम्हारा नाम उकसा है - इसलिए ?) - अच्छा इस बात का लगता है कि - आसानी से लैप टॉप में हिन्दी लिखना है - इसी खोज का आवेग है अन्यथा अभिव्यक्ति / भाषा का कुम्भकरण ( हर दोपाए की तरह) हसरत में है कब और कितना सोयेगा / जागेगा जगायेगा, देखा जायेगा| तकरीबन बीस साल हुए हिन्दी में चिट्ठी तक लिखे इसके पहले सो .....
रही बात मीटर की - अपने आप मिलता है अगर मैटर मीटर वाला हो | और दूब - देखते हैं ?
फिलहाल (बकौल अजगर) नजला झड़ रहा है (शुक्र है जुलाब का दृष्टांत न दिया) -साभार
पुनश्च : .. हाँ और लघु प्रेम कथायों को थोड़ा अल्प विराम देके प्रेम कविताओं को चालू करो अपने पन्ने पर तो ?
कविताएं अजगर की नहीं हैं, जिसकी हैं वह पहले छप कर पुस्तकाकार में आ जाए फिर धीरे धीरे ब्लॉग में ले आएंगे. हिंदी में कविताओं की किताब लाना अमूमन बुरा सौदा है प्रकाशकों के लिए. तब तक लव स्टोरी चलने देते हैं. औरते पसंद कर रहीं हैं. मर्द जल रहे हैं. देवत्व के लिए और क्या चाहिए होता हैं, मुझे नहीं पता. दरअसल लव स्टोरी से मैं भी बोर हो गया हूं. 563 पता नहीं कैसे लिखा गया जो निभाने की सजागले पड़ गई है.
पर जल्द ही कुछ और लिखूंगा. अजगर अपनी केंचुली उतारना चाहता है इन दिनों और शायद बहुत जल्द ही ऐसा हो जाएगा, उसे लगता है.
नजले की उपमा को बदलते हैं. कहते हैं कि बरसों बाद एक झरना फूटा है, जो जल्द ही नदी बनेगा पहले अरण्य की सभ्यता और फिर सभ्यता के अरण्य के साथ-
लिखते रहिए
भाई मनीष
वाह वा...क्या लिखते हो भाई. ऐसे ऐसे शब्द ढूँढ ले लगाये हैं आपने अपनी ग़ज़ल में के मज़ा आ गया . मैंने भी ऐसे ही प्रयोग किए थे अपनी ग़ज़ल "तेरी यादों का चाँद" में कभी फुरसत मिले तो पढिएगा. आप के ब्लॉग पर आना सार्थक हो गया. बधाई.
नीरज
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